सामान्य ज्ञान
भारत में कलचुरि वंश के 15 शासकों ने लगभग 900 से 1200 ई. तक राज्य किया, परंतु सिक्के कुछ ही शासकों के मिले हैं। इनमें सर्वाधिक सिक्के गांगेयदेव (1015-1041 ई.) के मिले हैं। उसके सोने के सिक्के यद्यपि मिश्रित धातु के हैं, परंतु पूर्णतया मौलिक हैं, इसीलिए ये नवीन गांगेयदेव शैली के कहलाए। ये आकार में पतले एवं 60 ग्रेन तौल के हैं। इस शैली का अनुकरण समकालीन चंदेल, गहड़वाल, चाहमान एवं तोमर आदि वंश के राजाओं द्वारा किया गया। इसके अलावा एवं प्रारंभिक कलचुरि शासक कृष्णराज (छठी शताब्दी ई. मध्य) द्वारा जारी अनेक रजत सिक्के राजस्थान एवं महाराष्टï्र में मिले हैं। ये गुप्तशैली के हैं एवं इन्हें कृष्णराज रूपक नामक दिया गया।
डाहल(छत्तीसगढ़) के चेदिवंशीय शासकों (लगभग 1000-1200 ई.) के 60 ग्रेन तौल वजन के सोने, चांदी एवं तांबे के सिक्के महानदी की घाटी एवं अनेक स्थलों से मिले हैं। पृथ्वीदेव एवं रत्नदेव नामक शासकों के ज्यादा सिक्के मिले हैं, जिन पर अश्वारोही और हनुमान की आकृति उत्कीर्ण है।
अध्यात्म रामायण
अध्यात्म रामायण वाल्मीकि रामायण से भिन्न रामकथा का संस्कृत ग्रंथ है। कुछ लोग इसे शिव की रचना बताते हैं। कुछ का विचार है कि इसकी रचना वेद व्यास ने की।
रामायण की कथा बहुत व्यापक है। यह अठारहों पुराणों में मिलती है। कुछ विद्वान मानते हैं कि ब्रह्मïांड पुराण में दी हुई रामायण की कथा ही वास्तव में अध्यात्म रामायण है। तुलसीदास रचित रामचरितमानस पर अध्यात्म रामायण का बड़ा प्रभाव माना जाता है।