सामान्य ज्ञान

दुनिया के देशों में प्रेस की आजादी
29-Jun-2021 12:12 PM
दुनिया के देशों में प्रेस की आजादी

प्रेस की आजादी का अर्थ है कामकाज और विषय चुनने में स्वतंत्रता और किसी भी तरह के बाहरी दखल का अभाव। एक जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए प्रेस की स्वतंत्रता सबसे जरूरी मानी जाती है। लेकिन विडंबना है कि सफल जनतांत्रिक व्यवस्था वाले अनेक देशों में भी प्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता हासिल नहीं है। कहीं परोक्ष रूप से तो कहीं सीधे-सीधे प्रेस के काम को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है। उसे मनचाही दिशा में मोडऩे की साजिश रची जाती है। पत्रकारों पर हमले होते हैं।
वैसे तो प्रेस की स्वतंत्रता को मापना कठिन काम है फिर भी रिपोटर्स विदाउट बॉर्डर्स ने अपने वल्र्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2013 के जरिए इसकी कोशिश की है। उसने प्रेस की स्वतंत्रता के कुछ मानक तय किए हैं। उसने इस बात पर ध्यान दिया कि विभिन्न देशों में प्रेस को लेकर कैसे कानून बने हैं और पत्रकारों के प्रति स्टेट और समाज का रवैया कैसा है। उसने इन्हीं कुछ आधारों पर विभिन्न देशों की रैंकिंग की है। फिनलैंड, नीदरलैंड, नॉर्वे, लग्जम्बर्ग जैसे देश इसमेें काफी ऊपर हैं पर भारत को 140 वां नंबर मिला है।
 प्रेस की आजादी के लिहाज से फिनलैंड का नाम सबसे पहले आता है। वहां संवाददाता बेरोकटोक अपना काम करते हैं और प्रोत्साहन भी पाते हैं। फिनलैंड को यह सम्मान लगातार तीसरी बार मिला है।
नीदरलैंड इस मामले में  दूसरे नंबर पर है। वहां भी पत्रकारों को खुलकर काम करने का अवसर मिलता है। समाचार संस्थानों का माहौल बेहद सौहार्दपूर्ण है। तीसरे स्थान पर है नॉर्वे, जहां संविधान लागू होने के वक्त यानी सन् 1814 में ही प्रेस की आजादी सुनिश्चित की गई थी। वहां ज्यादातर अखबार निजी हैं और अपना कामकाज खुद संभालते हैं। सरकार उन्हेें बराबर सहयोग करती है। हालांकि वहां के मीडिया पर लेफ्ट के प्रति पूर्वाग्रह भरा रवैया अपनाने का आरोप लगता रहता है।
लग्जम्बर्ग में भाषाई विविधता  मीडिया की विशेषता है। प्रेस की आजादी के मामले में चौथे नंबर पर रहने वाले इस देश के प्रिंट और ऑडियो विजुअल मीडिया के क्षेत्र में विदेशी संस्थानों का स्वागत हमेशा से होता आया है।
एंडोरा, यूरोप का यह छठा सबसे छोटा देश है। यह छोटा जरूर है पर प्रेस की आजादी के मामले में यह कई बड़े देशों से भी आगे है। पत्रकार यहां खुलकर काम करते हैं और अपने काम से संतुष्ट भी रहते हैं।

केंद्रीय आयुध एवं युद्ध कौशल विद्यालय

केंद्रीय आयुध एवं युद्ध कौशल विद्यालय, सीमा सुरक्षा बल, इंदौर इस वर्ष अपनी स्थापना के 50 वर्ष पूर्ण कर रहा है।  

केंद्रीय आयुध एवं युद्ध कौशल विद्यालय, सीमा सुरक्षा बल का सबसे पहले स्थापित किया गया, एक विशिष्ट केंद्र है। यह संस्थान लघु शस्त्र के शूटिंग कौशल में उत्कृष्टता प्रदान करता है। इसकी स्थापना सीमा सुरक्षा बल के प्रथम महानिदेशक स्वर्गीय श्री खुसरो फरामुर्ज रूस्तमजी (आईपीएस) का सपना था। वे इस संस्थान के माध्यम से एक मंच तैयार करना चाहते थे, जहां केंद्रीय पुलिस संगठनों तथा राज्य पुलिस बलों के कार्मिक व अधिकारी उच्च कोटि का प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ-साथ एक दूसरे से परिचित हों, अपने अनुभवों को बाटें तथा आपसी सहयोग स्थापित करें। उनके नजरिये में पुलिस अभियानों में आधुनिकता का विकास तथा पेशेवर अंदाज का असर तभी संभव हो सकता था।
केंद्रीय आयुध एवं युद्ध कौशल विद्यालय, सीमा सुरक्षा बल, इंदौर के बिजासन रोड पर स्थित है। इस मुख्य कैंपस के अतिरिक्त बिजासन टेकरी, बुडानिया व रेवती रेंज भी इसी के अंग हैं, जहां पर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिये जाते हैं, जिसमें शस्त्र और रणनीति पाठ्यक्रम, आईपीएस परीविक्षार्थियों के पाठ्यक्रम, प्लाटून वेपन पाठ्यक्रम,  निशानची पाठ्यक्रम, नये हथियार और निगरानी उपकरण पाठ्यक्रम, नक्शा अनुदेशकों के पाठ्यक्रम, शस्त्र के सहायक निरीक्षणालय पाठ्यक्रम, भर्ती कांस्टेबल के लिए सहायक प्रशिक्षण केंद्र, सेमिनार/कार्यशालाएं/सहभागिता/माड्यूल प्रशिक्षण कार्यक्षेत्र तथा वरिष्ठ बीएसएफ अधिकारियों के प्रशिक्षण शामिल हैं।
कैंपस की स्थापना सन् 1930 में महाराजा तुकोजी राव होल्कर द्वारा अपनी प्रथम केवलरी तथा तोपखाना रखने के उद्देश्य से की गई थी। इसमें लगभग 100 घोड़े एवं दर्जन भर तोपें शामिल थी। सन् 1938 में इस यूनिट को भंग कर दिया गया था, किंतु इस तोपखाने की तोपों को विभिन्न समारोहों के दौरान, भ्रमण में आने वाले गणमान्य अतिथियों को सलामी देने और दशहरा उत्सव मनाने के लिए इस्तेमाल में लिया जाता रहा। सन् 1940 में महाराजा तुकोजी राव होल्कर ने रिक्रूटों को प्रशिक्षण देने के मकसद से यहां पर एक प्रशिक्षण केंद्र खोला, जिसका नाम इंदौर प्रशिक्षण केंद्र रखा गया। स्वतंत्रता के बाद पूरे संस्थान को मध्य भारत की पुलिस को सौंप दिया गया। जिन्होंने यहां अपने आरक्षकों, मुख्य आरक्षकों, उप निरीक्षक, निरीक्षक एवं उपाधीक्षक को प्रशिक्षण देने के लिए पुलिस प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया। 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के पश्चात पूरा संस्थान मध्य प्रदेश पुलिस को सौंप दिया गया।
केंद्रीय आयुध एवं युद्ध कौशल विद्यालय, इंदौर की स्थापना 15 जून 1963 को इंटेलीजेंस ब्यूरो के अधीन की गई। सीमा सुरक्षा बल ने इस राष्ट्रीय संस्थान को संचालित करने की जिम्मेदारी जून 1966 से ली।
 इस संस्थान के सहायक प्रशिक्षण केंद्र में हर वर्ष एक हजार से अधिक नव-आरक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है। इस संस्थान को भारत सरकार, गृह मंत्रालय द्वारा 30 सितम्बर 1999 को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस घोषित किया गया।
 

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