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गंगा बेसिन में 20,685 हेक्टेयर क्षेत्र में हैं फैली हैं 4,707 हिमनद झीलें
30-Jun-2021 9:23 AM
गंगा बेसिन में 20,685 हेक्टेयर क्षेत्र में हैं फैली हैं 4,707 हिमनद झीलें

-ललित मौर्य 

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी एटलस के मुताबिक, गंगा बेसिन में मौजूद 4,707 हिमनद झीलों में से सबसे ज्यादा 2,437 कोसी बेसिन में हैं। इसके बाद घाघरा में 1,260 हिमनद झीले हैं

आज गंगा बेसिन ग्लेशियल लेक एटलस को जारी किया गया है, जिससे पता चला है कि गंगा बेसिन में 4,707 ग्लेशियल लेक हैं जोकि 20,685 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हैं। इस एटलस को जल शक्ति मंत्रालय (जल संसाधन, आरडी एंड जीआर) के सचिव पंकज कुमार द्वारा जारी किया गया है।

यह एटलस गंगा नदी के उद्गम से लेकर हिमालय की तलहटी तक इस बेसिन में खोजी गई 4,707 हिमनद झीलों पर आधारित है, जिनको इस एटलस में मानचित्रित किया गया है। इनका कुल जलग्रहण क्षेत्र करीब 2,47,109 वर्ग किलोमीटर का है। गंगा नदी बेसिन के इस अध्ययन में भारत के साथ-साथ सीमा पार के क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।

गंगा बेसिन में मौजूद 4,707 हिमनद झीलों में से सबसे ज्यादा 2,437 कोसी बेसिन में हैं। इसके बाद घाघरा में 1260, गंडक में 624, ऊपरी गंगा बेसिन में 295, सारदा में 55 और यमुना बेसिन में 36 हिमनद झीले हैं।

डीओडब्ल्यूआर, आरडी एंड जीआर के सचिव पंकज कुमार ने इसरो, एनआरएससी और एनएचपी की टीम को उनके द्वारा तैयार इस एटलस के लिए बधाई देते हुए कहा कि यह एटलस हिमनद झीलों के प्रबंधन के साथ-साथ ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) और जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों को कम करने में भी मददगार होगी। साथ ही यह शोधकर्ताओं, जल संसाधन पर काम कर रहे लोगों, आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों और अन्य के लिए भी फायदेमंद होगी।

यह एटलस गंगा नदी बेसिन में मौजूद 0.25 हेक्टेयर से अधिक बड़ी हिमनद झीलों का एक व्यापक और व्यवस्थित डेटाबेस है। जिसे उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों की मदद से तैयार किया गया है। जिसकी मदद से स्थानीय स्तर पर इन झीलों में आने वाले बदलावों और नई झीलों के निर्माण पर नियमित और एक निश्चित समयावधि में निगरानी रखी जा सकती है। जो इसके लिए प्रामाणिक डेटाबेस भी प्रदान करता है।

वहीं यदि जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से देखें तो इस एटलस की मदद से पहले और भविष्य में जो बदलाव होंगें उन पर जलवायु परिवर्तन का कितना असर है इस सन्दर्भ में आंकड़ों का विश्लेषण किया जा सकता है। जिस तरह से जलवायु में आ रहा बदलाव ग्लेशियर को प्रभावित कर रहा है ऐसे में इस एटलस की मदद से ग्लेशियर की जानकारी और उनमें जलवायु परिवर्तन के कारण उनमें कितना बदलाव आया है इसके अध्ययन के लिए किया जा सकता है।

हाल ही में अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में छपे एक शोध से पता चला है कि दुनिया भर के ग्लेशियरों में जमा बर्फ पहले के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है। हिमालय के ग्लेशियर भी इनसे अलग नहीं है।

यही नहीं हिमनद झीलों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां जैसे कि उनके प्रकार, जल विज्ञान, स्थलाकृतिक, और संबंधित ग्लेशियरों की जानकारी बहुत मायने रखती हैं जिनकी मदद से ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) की पहचान की जा सकती है। हिमालय क्षेत्र से जुड़ी यह जानकारियां कितनी महत्वपूर्ण हैं इसका अंदाजा आप उत्तराखंड और चमोली में आई त्रासदी से ही लगा सकते हैं।

इस एटलस का उपयोग केंद्र और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आपदा सम्बन्धी योजनाओं के निर्माण और उससे जुड़े कार्यक्रम के लिए भी कर सकते हैं। (downtoearth.org.in)

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