सामान्य ज्ञान
जगदीश चंद्र बोस भारत के जाने-माने भौतिक शास्त्री और वैज्ञानिक हुए हैं। जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन एवं धु्रवीकरण के क्षेत्र में अपने प्रयोग भी प्रारंभ कर दिये थे। लघु तरंगदैध्र्य, रेडियो तरंगों तथा श्वेत एवं पराबैगनी प्रकाश दोनों के रिसीवर में गेलेना क्रिस्टल का प्रयोग बोस के द्वारा ही विकसित किया गया था। मारकोनी के प्रदर्शन से 2 वर्ष पहले ही 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर से एक घण्टी बजाई और बारूद में विस्फोट कराया था।
आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे वेव गाईड, धु्रवक, परावैद्युत लैंस, विद्युत चुम्बकीय विकिरण के लिए अर्धचालक संसूचक, इन सभी उपकरणों का उन्नींसवी सदी के अंतिम दशक में बोस ने अविष्कार किया और उपयोग किया था। श्री बोस ने ही सूर्य से आने वाले विद्युत चुम्बकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था जिसकी पुष्टि 1944 में हुई।
इसके बाद श्री बोस ने, किसी घटना पर पौधों की प्रतिक्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। श्री बोस ने दिखाया कि यांत्रिक, ताप, विद्युत तथा रासायनिक जैसी विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाओं में सब्जियों के ऊतक भी प्राणियों के समान विद्युतीय संकेत उत्पन्न करते हैं।
1917 में जगदीश चंद्र बोस को नाइट की उपाधि प्रदान की गई तथा शीघ्र ही भौतिक तथा जीव विज्ञान के लिए रॉयल सोसायटी लंदन के फैलो चुन लिए गए। श्री बोस ने अपना पूरा शोधकार्य बिना किसी अच्छे उपकरण और प्रयोगशाला के किया था इसलिए जगदीश चंद्र बोस एक अच्छी प्रयोगशाला बनाने की सोच रहे थे। बोस इंस्टीट्यूट (बोस विज्ञान मंदिर) इसी सोच का परिणाम है जो कि विज्ञान में शोधकार्य के लिए राष्ट्र का एक प्रसिद्ध केन्द्र है।
यज़ता
पारसी धर्म में अहुर मज़्दा (प्राचीन ईरानी धर्म में सर्वोच्च देवता) द्वारा बनाए दूतों के संघ के सदस्य यजता कहलाते है। माना जाता है कि ये विश्व व्यवस्था बनाए रखने में मदद करते हैं, अर्हिमन और उनके राक्षसों की शक्तियों का दमन करते हैं।
यज़ता सूर्य की रोशनी एकत्र कर उसे धरती पर उंडेलते हैं। नैतिक उद्देश्य में यम के समान है, जिसमें अनुपालन के पांच वर्ग हैं- स्वच्छता, अपनी भौतिक स्थिति से संतुष्टिï, संन्यास, मोक्ष से संबद्ध तत्त्वमीमांसा का अध्ययन और भगवान के प्रति समर्पण। इसमें न तो यम और न ही नियम अलग से योग की कोई स्थिति हैं; ये योग साधक को दु:साध्य चरणों के लिए तैयार करते हैं।