सामान्य ज्ञान
बाटिक या बातिक एक पारम्परिक कला रूप है, जिसमें कपड़े पर सुंदर और जटिक पैटर्न पैटर्न बनाने के लिए मोम और डाई का इस्तेमाल किया जाता है। पारम्परिक बाटिक कला की शुरुआत मिस्र, चीन, भारत तथा जापान में काफी पहले से की जा रही है, पर दुनिया भर में इंडोनेशियाई पारम्परिक बाटिक सर्वाधिक लोकप्रिय है।
इस कला रूप का सही उद्भव का पता लगना काफी कठिन है। बहुत संभव है कि इन सभी संस्कृतियों ने बिना एक-दूसरे के संपर्क में आये समान तकनीकियों का विकास किया, पर सबसे मान्य सिद्धांत यह है कि इसका जन्म एशिया में हुआ और वहां से इसका फैलाव मलय द्वीपसमूह तक हुआ, जहां सबसे उन्नत गुणवत्ता के बाटिक का निर्माण किया जाता है। बाटिक का अस्तित्व वहां लिखित भाषा के आने से पहले से था, यही एक कारण है कि संभव है कि यह इंडोनेशिया मूल का है। जावा द्वीप बाटिक कला का केंद्र है। डच औपनिवेशिक शक्ति ने इस कला की कीमत पहचान ली और स्थानीय व्यापार करना आरंभ कर दिया। यहां तक कि वे इंडोनेशियाई कारीगरों को योरोप ले गए ताकि वहां डच कारीगरों को इन सुंदर फैब्रिक पर रंग करना सिखाया जाए।
पारम्परिक बाटिक पर प्रयुक्त मोम मधुमक्खी वाला मोम होता है, पर पराफिन मोम भी कारगर होता है। बाटिक बनाने की अन्य विधि है बाटिक कैपिंग। बाटिक ट्युलिस बनाने के लिए आवश्यक कारीगरी काफी उच्च स्तर की होती है तथा हाथ से बने फैब्रिक्स और मशीन से बने फैब्रिक के बीच कीमत को छोडक़र कोई अंतर नहीं पकड़ा जा सकता है। कुछ बाटिक ट्युलिस की कीमत प्रति मीटर हजारों रुपए आती है और जो इसके 1 मीटर टुकड़े के निर्माण में आई कीमत को दर्शाता है।
बाटिक शुरुआत में लोगों द्वारा पहने जाने वाले फेब्रिक पर रंग चढ़ाने की विधि हुआ करती थी, पर यह एक कला रूप में विकसित हुआ। प्रारम्परिक डिजाइन कुछ वर्ग के लोगों द्वारा पहना जाता था, जो शक्ति तथा समाज में उनके कद को बताता था, जैसे कि कावुंग जिसे केवल राजा या रानी द्वारा ही पहना जाता था। कुछ डिजाइन केवल पारम्परिक उद्देश्यों जैसे को सिडो मुक्ती के लिए होते थे, जिसका इस्तेमाल वर-वधू द्वारा किया जाता था।