सामान्य ज्ञान
फाइनैंस कमिशन का गठन हर 5 साल पर संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत किया जाता है। इसका प्रमुख काम केंद्र सरकार को राज्यों के साथ टैक्स बंटवारे के बारे में सलाह देना है। कमिशन कंसॉलिडेट फंड ऑफ इंडिया से राज्यों को मिलने वाले ग्रांट के लिए भी नियम बनाता है। इसका काम राज्यों के संसाधनों को बढ़ाने के लिए उपाय सुझाना भी है। साथ ही, पंचायत और नगर निगमों के संसाधनों को बढ़ाने के लिए कमिशन तरीका ढूंढता है।
हमारे संविधान का संघीय ढांचा है। ज्यादातर टैक्स से जुड़े अधिकार केंद्र के पास हैं, लेकिन अधिकांश खर्च राज्य करते हैं। इस तरह के ढांचे में केंद्र सरकार को संसाधनों को राज्य सरकार को ट्रांसफर करने की जरूरत होती है। केंद्र सरकार इनकम टैक्स, एक्साइज और कस्टम जैसे बड़े टैक्स वसूलती है। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसा देशों में भी संघीय ढांचा है। वहां इसी तरह से केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स का बंटवारा होता है।
कमिशन बाकी फिस्कल मसलों की भी पड़ताल कर सकता है। सरकार कमिशन को कोई खास फिस्कल मुद्दे पर सलाह देने को कह सकती है। संविधान के मुताबिक, फाइनैंस कमिशन की सिफारिशें लागू करने के लिए सरकार बाध्य नहीं है। हालांकि, अब तक यह परंपरा रही है कि सरकार कमिशन की सिफारिशों के आधार पर ही टैक्स रेवेन्यू का बंटवारा राज्यों के बीच करती है। ये सिफारिशें सेंट्रल और ड्यूटी से जुड़ी होती हैं और आम तौर पर ग्रांट का नियम राष्ट्रपति के आदेश के जरिए लागू होता है।