सामान्य ज्ञान
हेयर ट्रांसप्लांटेशन एक ऐसा सर्जिकल मेथड है जिसकी मदद से शरीर के दूसरे अंगों से बालों को लेकर सिर के गंजे भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है। इंप्लांट किए गए ये बाल परमानेंट होते हैं और इन्हें सिर के पिछले और साइड वाले हिस्सों से लिया जाता है। इंप्लांट होने के तकरीबन दो हफ्ते बाद ये उगने शुरू हो जाते हैं और एक साल के बाद ये पूरे नजर आने लगते हैं और नैचरल बालों जैसे दिखने लगते हैं। इन बालों की खूबी यह है कि ये परमानेंट होते हैं और जीवन भर रहते हैं, हालांकि कुछ केस ऐसे भी देखे गए हैं, जिनमें ये बाल उम्र बढऩे के साथ-साथ खत्म हो जाते हैं। जिस एरिया से बाल लिए जाते हैं, उसे डोनर एरिया कहते हैं। बाल लेने के बाद वहां टांके लगा दिए जाते हैं। कुछ दिनों बाद वह जगह अपने आप सामान्य हो जाती है।
स्ट्रिप मेथड या एफयूटी यह हेयर ट्रांसप्लांटेशन करने का सबसे पुराना तरीका है और आज भी इसका खूब इस्तेमाल होता है। पहले मरीज को लोकल एनास्थीसिया दिया जाता है। उसके बाद डोनर एरिया से हाफ इंच की एक स्ट्रिप निकाल ली जाती है और उसे सिर के उस भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। हाफ इंच की एक स्ट्रिप में आमतौर पर दो से ढाई हजार तक फॉलिकल हो सकते हैं और एक फॉलिकल में दो से तीन बालों की रूट्स होती हैं।
अगर गंजापन हेयरलाइन के एरिया में है तो एक-एक बाल रोपा जाता है। इंप्लांट करने के बाद डोनर एरिया में खुद घुल जाने वाले टांके लगा दिया जाते हैं। यह जगह कुछ दिनों बाद सामान्य हो जाती है। जिस एरिया में बाल लगाए जाते हैं, उस पर एक रात के लिए पट्टियां लगा दी जाती हैं, जिन्हें अगले दिन क्लिनिक में जाकर मरीज हटवा सकता है या खुद भी हटा सकता है। पूरे प्रोसिजर में पांच से छह घंटे लगते हैं। इस प्रक्रिया में मरीज के ही बाल लिए जाते हैं।
अतीश
अतीश जिसे दीपंकर भी कहा जाता है, भारतीय बौद्ध सुधारवादी हुए हैं जिनकी शिक्षाएं तिब्बत के बौद्ध धर्म के एक मत काग्युद्पा का आधार बनी। जिसकी स्थापना उनके शिष्य ब्रॅम- स्टॅन ने की थी।
भारत में बौद्ध अध्यययन के केंद्र नालंदा से 1038 या 1042 में तिब्बत की यात्रा करने वाले अतीश ने वहां मठ स्थापित किए और बौद्ध धर्म की तीन शाखाओं पर बल देने वाले प्रबंध लिखे। ये तीन शाखाएं हैं- थेरवाद (गौतम बुद्ध में पूर्ण आस्था), महायान (कई बुद्धों में से गौतम बुद्ध को एक मानना और वज्रयान (योग पर बल)।
उन्होंने शिक्षा दी कि तीन अवस्थाएं एक के बाद एक आती हैं और उनकी इसी क्रम में पालन करना चाहिए। उनकी मृत्यु न्येथांग मठ में हुई। जहां उनकी समाधि आज भी मौजूद है।