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रामपुर रजा पुस्तकालय
05-Jul-2021 12:23 PM
रामपुर रजा पुस्तकालय

उत्तरप्रदेश के रामपुर में स्थित-रामपुर रज़ा पुस्तकालय का निर्माण तत्कालीन रामपुर रियासत में नवाब फैज़ुल्लाह खान ने 1774 में किया था। यह पुस्तकालय भारत और इस्लामी शिक्षा तथा कला का खज़ाना है। नवाब फैज़ुल्लाह खान ने 1794 तक यहां पर शासन किया था और वंशागत बहुमूल्य पाण्डुलिपियां, ऐतिहासिक दस्तावेज़, मुगलों के लघु चित्र, किताबें और नवाबों के तोशखाने में पड़े कला संबंधी अन्य कार्य इसमें संग्रहित किए। उन्होंने खुद वस्तुएं खरीदकर इसमें संग्रहित कीं ।
नवाब मुहम्मद युसुफ अली खान नज़ीम एक साहित्यिक व्यक्ति और उर्दू के मशहूर शायर थे तथा शायर मिर्जा गालिब के अनुयायी थे। उन्होंने पुस्तकालय का अलग विभाग बनाया और कोठी जनराली के नवनिर्मित कक्षों में उसे स्थानांतरित कर दिया। नवाब ने जाने-माने कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों ने सुलेखक, प्रकाशिक और जिल्दसाज़ों को आमंत्रित किया। उनके बाद के नवाबों ने भी इस संग्रह को समृद्ध बनाया।
 पुस्तकालय में अरबी, फारसी, संस्कृत, हिंदी, तमिल, पश्तों, उर्दू, तुर्की तथा अन्य भाषाओं की पाण्डुलिपियों का विशिष्ट संग्रहण है। इसमें मुगल, फारसी, राजपूत, अवध से संबंधित चित्र भी हैं।
पुस्तकालय में 17 हजार पाण्डुलिपियां, 60 हजार मुद्रित पुस्तकें करीब 5 हजार छोटे चित्र, इस्लामिक हस्तलिपि के 3 हजार असाधारण प्रतिरूप, नवाबों के समय की वस्तुओं के अतिरिक्त सदियों पुराने खगोलीय उपकरण और 5वीं शताब्दी ईसापूर्व से 19वीं शताब्दी ईस्वी के करीब 1500 बहुमूल्य सोने, चांदी और तांबे के सिक्के संरक्षित हैं। पुस्तकालय में मुगलों की तथा पुरानी असाधारण वस्तुएं भी मौजूद हैं। पुस्तकालय में ताड़ के पत्ते पर तमिल, तेलगु, कन्नर और मलयालम भाषाओं में लिखी पाण्डुलिपियां भी संग्रहित हैं।
पुस्तकालय को व्यवहारिक तौर पर 12 सदस्यों वाले रामपुर रजा पुस्तकालय बोर्ड द्वारा प्रबंधित किया जाता है जिसके अध्यक्ष उत्तरप्रदेश के राज्यपाल हैं। रामपुर रजा पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियां और 14वीं से 19वीं शताब्दी के बीच की तुर्क-मंगोली, फारसी, मुगल, राजपूत, राजस्थानी, किशनगढ़, पहाड़ी, कांगड़ी, दक्कनी, अवधी और ब्रिटिश शैली की 5 हजार लघु कलाकृतियों का संकलन मौजूद है। यहां मौजूद दुर्लभ सचित्र पांडुलिपियों में से रशीद्दुदीन- फजुल्लाह कृत जमिउत-त्वारिख की पांडुलिपि वृहत आकार की है जो कि अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान, वैज्ञानिक और चिकित्सक तथा मध्य एशिया के गज़ा खान के प्रधानमंत्री थे। यह पुस्तक 710 हिजरी (1310 ईस्वी) में संकलित की गई। इसमें मंगोल जनजाति की जिंदगी और समय को दर्शाते 84 चित्र हैं।
इसके अलावा 1430 ईस्वी में फिरदौसी द्वारा रचित शाहनामा भी महत्वपूर्ण सचित्र पांडुलिपि है जिसमें 52 चित्र हैं।  निजामी गांजवी द्वारा रचित मनस्वी लैला मजनू भी दुर्लभ सचित्र पांडुलिपि का उदाहरण है जिसे 949 हिजरी. (1542-43 ईस्वी) में खूबसूरत नस्तालिक लिपि में उकेरा गया है। साथ ही हिजरी 977 (1569-70 ईस्वी) में नस्तालिक शब्दों में जमालुद्दीन-कतिब शिराजी द्वारा रचित अबदुर रहमान जामी की सचित्र  पांडुलिपि भी उल्लेखनीय है। वहीं इन सब के अलावा भी पुस्तकालय में कई नायाब चीजें संग्रहित की गई हैं। 
 

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