सामान्य ज्ञान
जब बादल का तापमान हिमांक से नीचे पहुंच जाता है तब वहां नन्हें-नन्हें हिमकण बनने लगते हैं। जब ये कण बादल से नीचे की ओर गिरते हैं तो वे एक दूसरे से टकराते हैं और एक दूसरे में जुड़ जाते हैं। इस प्रकार इनका आकार बड़ा होने लगता हैं। जितने ज़्यादा हिमकण आपस में जुड़ते हैं हिमकण का आकार उतना ही बड़ा होता जाता हैं। पृथ्वी पर वे छोटे-छोटे रुई के फाहों के रूप में झरने लगते हैं। इन्हें हिमपर्त कहते हैं।
ये हिमपर्त षटकोणीय होते हैं और कोई भी दो हिमपर्त आकार में एक से नहीं होते। काले चित्र में हिमपर्त के कुछ आकार दिखाए गए हैं। हिमकण प्रकाश को प्रतिबिम्बित करते हैं, इसलिए ये सफ़ेद दिखाई देते हैं। अगर हवा का तापमान हिमांक से नीचे न हो तो ये हिमकण गिरते समय पिघल जाते हैं। केवल सर्दी होने से बर्फ नहीं गिरती है। इसके लिए हवा में पानी के कण होना ज़रूरी है।
गिरी हुई बर्फ कहीं बहुत हल्की तो कहीं बहुत गहरी भी हो सकती है। क्यों कि बफऱ् हवा से उड़ती हुई इधर-उधर जाती है और एक जगह पर इक_ा हो जाती है। गिरती हुई बफऱ् हमेशा नर्म नहीं होती। कभी-कभी यह छोटे-छोटे पत्थरों के रूप में भी गिरती है। इन पत्थरों को ओले कहते हैं। इनमें बफऱ् की कई सतहें होती हैं। अभी तक सबसे बड़ा ओला 1.2 किलो का पाया गया है।
उत्तरी और दक्षिणी धु्रव पर बफऱ् के पहाड़ हैं। इन पहाड़ों से बफऱ् के बड़े-बड़े टुकड़े अलग होकर तैरते हुए आगे बढ़ते हैं। इन टुकड़ों को हिमशिला कहते हैं। बफऱ् पानी पर इसलिए तैरती है क्यों कि वह पानी से हल्की होती है।