सामान्य ज्ञान

नाथुला पास
10-Jul-2021 8:33 AM
नाथुला पास

नाथूला दर्रा या नाथुला पास भारत के सिक्किम और दक्षिण तिब्बत को जोड़ता है। यह 14 हजार 200 फीट की ऊंचाई पर है। भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध के बाद इसे बंद कर दिया गया था। इसे वापस जूलाई 6, 2006 को व्यापार के लिए खोल दिया गया है। बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत और चीन के होने वाले व्यापार का 80 प्रतिशत हिस्सा नाथू ला दर्रे के ज़रिए ही होता था। यह दर्रा प्राचीन सिल्क रुट का भी हिस्सा रहा है।
सिक्किम के इस पास से कभी भारत और चीन के बीच व्यापार होता था। कपड़ा, साबुन, तेल, सीमेंट और यहां तक कि स्कूटर को भी सीमा के पार टट्टू पर लादकर तिब्बत भेजी जाता था। गंगटोक से तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक 20 से लेकर 25 दिनों का सफर होता है। यह सारा सामान तिब्बत लाया जाता था और वहां से रेशम, कच्चा ऊन, देसी शराब, कीमती पत्थर, सोने और चांदी के बर्तन लाए जाते थे।
6 जुलाई 2006 को नाथुला पास फिर खुल तो गया, लेकिन इसकी पुरानी रौनक कभी नहीं लौटी। न तो दोनों देशों के रिश्ते बहुत बेहतर हुए और न ही पहले जैसा कारोबार हुआ। नथुला पास जाने के लिए परमिट की जरूरत पड़ती है। इसे अलग-अलग चेक पोस्ट पर दिखाना पड़ता है। नथुला पास पर एक यादगार चिन्ह बना हुआ है। यह मार्च 2002 में बनाया गया था।  यह 1962 में भारत -चीन लड़ाई और बाद के अन्य हादसों में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के यादगार में बनाया गया है। इसके ऊपर कुछ ऊपर चढऩे पर एक जगह पत्थर जड़ा हुआ है जिसमे लिखा हुआ है कि पं.जवाहर लाल नेहरू 1 सितम्बर 1958 को यहां आए थे।
चीन का भारत के साथ अब भी 90 हजार किलोमीटर सीमा को लेकर विवाद है और यह चीन और भारत के बीच ऐतिहासिक समस्याएं है। ल्हासा तक तेज रफ्तार ट्रेन पहुंचाने के बाद अब चीन नथुला पास से कुछ किलोमीटर दूर यादोंग तक रेल लाइन बिछाना चाहता है।  
 

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