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सूडान
12-Jul-2021 11:08 AM
सूडान

सूडान दुनिया का सबसे युवा राष्ट्री है, जो अफ्रीका का हिस्सा है।  9 जुलाई 2011 को अफ्रीका का सूडान दो हिस्सों में बंट गया। दक्षिणी हिस्सा रिपब्लिक ऑफ साउथ सूडान बना।
कई देशों के बीच बसा दक्षिण सूडान मध्यपूर्व अफ्रीका का हिस्सा है और दुनिया का 193वां देश है। इसकी राजधानी जूबा है। इसके पूर्व में इथोपिया, दक्षिण पूर्व में केन्या और दक्षिण में यूगांडा है। दक्षिण पश्चिम में इसकी सीमा कांगो से, पश्चिम में सेंट्रल अफ्रीकी गणतंत्र और उत्तर में सूडान से लगी हुई है। 9 जुलाई 2011 को सूडान एक जनमत संग्रह के बाद अलग देश बनाया गया। 98.83 फीसदी लोगों ने अलग देश के समर्थन में वोट किया। अनुमान के मुताबिक दक्षिण सूडान की जनसंख्या 82 लाख 60 हजार के करीब है। देश का क्षेत्रफल 6 लाख 19 हजार 745 वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल के आधार पर दक्षिण सूडान स्पेन और पुर्तगाल के कुल आकार से बड़ा है। ईसाई बहुल आबादी वाले दक्षिण सूडान में चार भाषाएं लिखी और बोली जाती है। अधिकारिक भाषा अंग्रेजी है, लेकिन दिनका, नुएर, बारी, मुरले, जांडे यहां की राष्ट्रीय भाषाओं में शामिल हैं।
 प्राकृतिक संसाधनों के मामले में दक्षिण सूडान धनी है। वहां कच्चे तेल का अपार भंडार है, लेकिन पाइपलाइनों के जरिए उत्तर सूडान से होकर तेल का निर्यात किया जाता है। अत्यधिक पिछड़े दक्षिण सूडान में आधारभूत संरचना न के बराबर है। देश में प्रसव के दौरान मृत्यु की दर बहुत ज्यादा है। शिक्षा की हालत इतनी खराब है कि 13 साल तक की उम्र के ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। 84 फीसदी महिलाएं निरक्षर हैं।
 

वर्साय संधि
वर्साय शांति संधि का संबंध प्रथम विश्व युद्ध से है। 27 जून 1919 को इस संधि पर दस्तखत के साथ  प्रथम विश्व युद्ध का अंत हुआ। जर्मनी के प्रतिनिधियों ने विजेता देशों द्वारा पेश संधि पर विरोध जताते हुए दस्तखत किए। उन्हें संधि तय करने की बातचीत में शामिल नहीं किया गया था. पेरिस के निकट वर्साय में हुई इस संधि ने जर्मनी के अधिकार काफी सीमित कर दिए। इस संधि को द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों में से एक भी माना जाता है।
 प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद जर्मनी को गठबंधन देशों के साथ उनकी शर्तों पर संधि करनी पड़ी। हालांकि लीग ऑफ नेशंस में इस संधि का पंजीकरण 21 अक्टूबर को हुआ और इसे संधियों की सूची में शामिल किया गया। इस संधि में प्रथम विश्व युद्ध की पूरी जिम्मेदारी जर्मनी के तृतीय राइष और उसके साथियों पर डाली गई और जर्मनी को अपनी भूमि का बड़ा हिस्सा खोना पड़ा। साथ ही उसे सेना को कम करने और विजेता देशों को हर्जाना देने को बाध्य किया गया। जर्मनी के ज्यादातर लोग सख्त शर्तों और जिस तरह से संधि हुई उसकी वजह से इसे अवैध और अपमानजनक मानते थे। इतिहासकारों का मानना है कि इसने द्वितीय विश्व युद्ध का बीज भी बो दिया।
 

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