सामान्य ज्ञान
निर्वाणोपनिषद ऋग्वेद की शाखा से सम्बन्धित उपनिषद है। निर्वाणोपनिषद जो अपने अर्थ को निर्वाण अर्थात मोक्ष को स्पष्ट करता है, जीवन के परम सत्य की रूप रेखा इसी के द्वारा तय हो पाती है सभी प्राणियों का अंतिम लक्ष्य इसी निर्वाण की प्राप्ति है। निर्वाणोपनिषद संसार के आवागमन से मुक्त होने के मुख्य आधार निर्वाण के विषय पर विशद विवरण प्रस्तुत करता है। मोक्ष ही इस बात को स्पष्ट रूप में व्यक्त करता कि निर्वाण का स्वरूप क्या है और किस प्रकार इसे प्राप्त किया जा सकता है।
इस निर्वाण उपनिषद में निर्वाण की खोज एवं रहस्य को व्यक्त किया गया है तथा उस परम सत्य की चर्चा की गई है जहां व्यक्ति विलीन हो जाता है और केवल शून्य ही रह जाता है। जहां ज्योति विलिन हो जाती है सभी सीमाएं असीम में खो जाती हैं तथा जहां प्राणि समा जाता है उस ईश्वर में और शेष ब्रह्म ही रह जाता है। निर्वाणोपनिषद में संन्यासी के सिद्धान्तों को सूत्रात्मक पद्धति द्वारा व्यक्त किया गया है। यहां उन संन्यासियों कि बात की गई है जिन्होंने इस ज्ञान को अपने भीतर समाहित किया है और जो इसे धारण करने योग्य हैं।