सामान्य ज्ञान

भगवान श्रीकृष्ण
28-Aug-2021 12:19 PM
भगवान श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार कृष्ण की सोलह हजार एक सौ आठ पत्नियाँ थीं। प्रत्येक पत्नी से उन्होंने  दस दस पुत्र प्राप्त हुए थे। इस प्रकार उनके समस्त पुत्रों की गिनती एक लाख इकसठ हजार अस्सी थी।  उनकी आठ मुख्य रानियां थीं और उनके पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं-

रानी रुक्मिणी-प्रधुम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारू, चरुगुप्त, भद्रचारू, चारुचंद्र, विचारू और चारू।

 सत्यभामा- भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु।

 जाम्बवंती- साम्ब, सुमित्र, पुरुजित, शतजित, सहस्त्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ और क्रतु।

 सत्या- वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रगु, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुन्ति।

 कालिंदी- श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास और सोमक।

  लक्ष्मणा-प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊर्ध्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजित।

 मित्रविन्दा- वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, अन्नाद, महांस, पावन, वह्नि और क्षुधि।

 भद्रा-संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक।

 भगवान श्रीकृष्ण ‘लीलाधर’ पुकारे जाते हैं। भगवान होकर भी श्रीकृष्ण का सांसारिक जीव के रूप में लीलाएं करने के पीछे मकसद उन आदर्शों को स्थापित करना ही था, जिनको साधारण इंसान देख, समझ व अपनाकर खुद की शक्तियों को पहचाने और जि़ंदगी को सही दिशा व सोच के साथ सफल बनाए।

 श्रीकृष्ण का सांसारिक धर्म का पालन कर, गुरुकुल जाना, वहां अद्भुत 64 कलाओं और विद्याओं को सीखने के पीछे भी असल में, गुरुसेवा और ज्ञान की अहमियत दुनिया के सामने उजागर करने की ही एक लीला थी। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि साक्षात जगतपालक के अवतार होने से श्रीकृष्ण स्वयं ही सारे गुण, ज्ञान और शक्तियों के स्त्रोत थे।  माना जाता है कि श्रीकृष्ण और बलराम ही जगत के स्वामी हैं। सारी विद्याएं और ज्ञान उनसे ही निकला है और स्वयंसिद्ध है। फिर भी उन दोनों ने मनुष्य की तरह बने रहकर उन्हें छुपाए रखा।

 श्रीकृष्ण व बलराम ने भी अंवतीपुर (आज के दौर का उज्जैन) नगरी में गुरु सांदीपनी से केवल 64 दिनों में ही गुरु सेवा व कृपा से ऐसी 64 कलाओं में दक्षता हासिल की, जो न केवल कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में बड़े-बड़े सूरमाओं को पस्त करने का जरिया बनी, बल्कि गुरु से मिले इन कलाओं और ज्ञान के अक्षय व नवीन रहने का आशीर्वाद श्रीमद्भगवद्गगीता के रूप में आज भी जगतगुरु श्रीकृष्ण के साक्षात ज्ञानस्वरूप के दर्शन कराता है ।

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