सामान्य ज्ञान
दूसरे विश्व युद्ध के अंत में जर्मनी पर मित्र राष्ट्रों के सैन्य नियंत्रण वाली नियंत्रण परिषद की स्थापना हुई। 30 अगस्त 1945 को नियंत्रण परिषद के गठन के साथ इसकी आधिकारिक घोषणा हुई।
इस नियंत्रण परिषद के तीन प्रमुख सदस्य सोवियत संघ, अमेरिका और ब्रिटेन थे जिसमें बाद में फ्रांस भी शामिल हो गया। परिषद का मुख्य कार्यालय बर्लिन के शोएनेबेर्ग इलाके में बनाया गया है। समय के साथ परिषद कई नियम, कानून और दिशा निर्देश लागू करता रहा जिनके जरिए नाजी कानूनों और तौर तरीकों का पूरी तरह खात्मा हो सके। हालांकि अलग-अलग इलाकों में अलग मित्र राष्ट्रों का नियंत्रण होने की वजह से कई मामलों में नियंत्रण परिषद अपनी नहीं मनवा सका। परिषद ने कई बातें सुझाव के तौर पर पेश कीं जो कानून का रूप नहीं ले सकीं। शीत युद्ध के दौरान धीरे-धीरे परिषद की ताकत भी घटती रही, हालांकि उससे उसका अस्तित्व खत्म नहीं हुआ।
12 सितंबर 1990 में चारों मित्र राष्ट्रों और पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के बीच हुए समझौते के साथ सैन्य नियंत्रण भी कम होने लगा और 15 मार्च 1991 में पूरी तरह खत्म हो गया। जर्मनी के एकीकरण के साथ ही मित्र राष्ट्रों का दखल भी पूरी तरह समाप्त हो गया।
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गुप्त वंश
पूर्वोत्तर भारत में और बाद में बिहार के मगध राज्य में गुप्त वंश के शासकों ने राज्य किय । गुप्त वंश के राजाओं नेे चौथी शताब्दी के आरंभ में छठी शताब्दी के उत्तराद्र्घ तक उत्तरी भारत और मध्य एवं पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया।
इस वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त प्रथम थे। गुप्तकाल के दौरान सभी क्षेत्रों में विकास हुआ। इसी काल में अंकों की दशमलव प्रणाली शुरू हुई। महान संस्कृत महाकाव्य, हिंदू कला, खगोल विज्ञान, गणित तथा धातु विज्ञान भी इस युग की देन है।
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गुतोब भाषा
गुतोब भाषा को गदबा भी कहा जाता है, जो भारत की ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार से संबद्घ मुंडा भाषाओं में से एक है। इसकी बोलियों में गदबा गुडवा शामिल हैं।
गुतोब भाषा उड़ीसा राज्य के कोरापुट जिले और आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम तथा विशाखापट्टïनम जिलों में बोली जाती है। अनुमानत: इसे बोलने वालों की संख्या लगभग 32 हजार से 54 हजार के बीच है।
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चंद्रकीर्ति
चंद्रकीर्ति , बौद्घ तर्कशास्त्र के प्रासंगिक मत के मुख्य प्रतिनिधि थे। चंद्रकीर्ति ने बौद्घ साधु नागार्जुन के विचारों पर प्रसन्नपद नामक प्रसिद्घ टीका लिखी। हालांकि नागार्जुन की व्याख्या में पहले से कई टीकाएं थीं, लेकिन चंद्रकीर्ति की टीका इनमें सबसे प्रामाणिक बन गई। मूल रूप से संस्कृत में संरक्षित यह एक मात्र टीका है।