सामान्य ज्ञान
देश में बने सबसे पहले विमान वाहक जहाज (प्रोजेक्ट-71) का नाम आईएनएस विक्रांत रखा गया है। इस जहाज का निर्माण 28 फरवरी 2009 को शुरू हुआ। आईएनएस विक्रांत देश की सबसे अधिक प्रतिष्ठित और सबसे बड़ी युद्धपोत परियोजना बन गई है।
जहाजों का निर्माण करने वाले देश के प्रमुख यार्ड कोचीन शिपियार्ड लिमिटेड को भारतीय नौसेना के लिए देश के अंदर विमान वाहक जहाज बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। विमान वाहक जहाज का मूल डिजाइन भारतीय नौसेना डिजाइन निदेशालय ने तैयार किया। इस डिजाइन का और विस्तृत रूप बाद में कोचीन शिपियार्ड लिमिटेड ने तैयार किया।
निदेशालय ने युद्धपोतों के 17 से अधिक डिजाइन तैयार किये हैं, जिनके आधार पर देश के अंदर लगभग 90 जहाज बनाए गए हैं। लगभग 40 हजार टन के जहाज विक्रांत का डिजाइन तैयार करना इस निदेशालय की परिपक्व क्षमता का सबूत है। यह डिजाइनरों के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, विशेष रूप से इसलिए कि यह दुनिया का इतने बड़े आकार का पहला विमान वाहक जहाज है, जिसमें गैस टर्बाइन प्रणोदन (प्रोपलशन) जैसे कुछ खास फीचर हैं।
परियोजना के चरण-1 की समाप्ति पर जलावतरण के अवसर पर बताया गया कि डिजाइन के अनुसार विमान वाहक जहाज की लंबाई 260 मीटर है और अधिकतम चौड़ाई 60 मीटर है। जहाज के उतरने वाली मुख्?य पट्टी तैयार है। 80 प्रतिशत से अधिक ढांचा भी तैयार है, जिसमें लगभग 2300 कक्ष हैं। 75 प्रतिशत से अधिक ढांचा खड़ा कर लिया गया है। प्रमुख मशीनें लगा दी गईं हैं, जैसे 80 मेगावाट बिजली बनाने वाले एल एम 2500 के दो गैस टर्बाइन, लगभग 24 मेगावाट बिजली बनाने वाले डीजल आलटरनेटर और मुख्य गियर बॉक्स भी लगा दिये गये हैं। विक्रांत को नावों के पुल के जरिए एरनाकुलम चैनल में उतारा गया। इसके बाद दूसरे चरण की फिटिंग्ज लगाई जानी हैं।
विमान वाहक जहाज एक छोटा सा तैरता हुआ शहर है, जिसके उडऩ क्षेत्र का आकार फुटबॉल के दो मैदानों के बराबर है। इसकी केबल तारों की लंबाई 2700 किलोमीटर है। अगर इस तार को लंबाई में खोलकर बिछाया जाए, तो यह तार कोच्चि से दिल्ली तक पहुंच जाएगी। जहाज में 1600 कर्मचारी काम करेंगे।
आईएनएस विक्रांत से रूस के मिग 29के विमान और नौसेना के एलसीए लड़ाकू विमान का संचालन किया जा सकेगा। हेलीकॉप्टरों में कामोव 31 और देश में निर्मित एएलएच हेलीकॉप्टर भी शामिल होंगे। यह जहाज आधुनिक सीडी बैंड अर्ली एयर वार्निंग रडार और अन्य उपकरणों की मदद से अपने आस-पास की काफी बड़ी वायु सीमा के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। जहाज की रक्षा के लिए सतह से आकाश तक मार करने वाली मिसाइलें तैनात होंगी। ये सभी अस्त्र प्रणालियां देश में विकसित युद्ध प्रबंधन प्रणाली के जरिए समन्वित होंगी।
जहाज के लिए इस्पात भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड के राऊरकेला, बोकारो और भिलाई संयंत्रों से प्राप्त किया गया है। मेन स्विच बोर्ड, स्टेयरिंग गियर आदि लार्सेन एंड टुब्रों के मुंबई और तालेगांव संयंत्रों में बनाए गए हैं। एयर कंडिशनिंग और रेफ्रिजरेशन प्रणालियां पुणे में किर्लोसकर संयंत्रों में विकसित की गईं हैं। पंपों की आपूर्ति बेस्ट और क्रॉमपोटन, चेन्नई से की गई है। भेल ने एकीकृत प्लेटफॉर्म प्रबंधन प्रणाली की आपूर्ति की है और विशाल गियर बॉक्स गुजरात में एलेकॉन में बना है। बिजली के केबल कोलकाता के निक्को उद्योग से प्राप्त किये गये हैं।