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Extreme Global Warming Event: क्या थे 150 हजार साल पुरानी घटना के कारण
04-Sep-2021 11:22 AM
Extreme Global Warming Event: क्या थे 150 हजार साल पुरानी घटना के कारण

हमारे वैज्ञानिक पृथ्वी के इतिहास के बारे में काफी जानकारी जमा कर चुके हैं. फिर भी ऐसी बहुत सारी घटनाएं हैं जिनके बारे में उन्हें स्पष्ट या प्रमाणिक तौर पर जानकारी नहीं मिल सकी है. कई घटनाएं ऐसी भी हैं जिनके होने के तो प्रमाण मिले हैं, लेकिन उनके कारणों के बारे में कुछ पता नहीं चल सका है. अभी तक यह माना जाता था कि ज्वालामुखियों से निकलने वाले कार्बनडाइऑक्साइड की वजह से तेजी से जलवायु परिर्वतन होता था. लेकिन इसके कारक के बारे में साफ तौर पर पता नहीं था. लेकिन हालिया अध्ययन ने पृथ्वी के इतिहास में हुए जलवायु परिवर्तनों के नाटकीय मोड़ों के कारकों पर रोशनी डाली है. 

पेलियोसीन-इयोसीन थर्मल मैग्जिमम जिसे शुरुआती इयोसीन थर्मल मैग्जिमम भी कहा जाता है. एक ऐसा दौर था जब पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग बहुत चरम पर था और यह समय करीब 150 हजार साल तक चला, लेकिन पीईटीएम की शुरुआत की वजह अभी तक पता नहीं चल सकी है. नए अध्ययन ने इसी बात पर रोशनी डाली है कि ऐसा क्या हुआ जिससे पृथ्वी के इतिहास में जलवायु परिवन के तेज और नाटकीय घटनाएं हुईं. अध्ययन ने सुझाया है कि अहम बदलाव बिंदुओं ने पृथ्वी के तंत्र में 5.5 करोड़ साल पहले तेजी से जलवायु परिवर्तन ला दिया था.

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने PETM के ठीक पहले और शुरुआत में बढ़े हुए पारे के स्तरों की पहचान की. ये पहचान उत्तरी सागर में अवसादों से लिए गए नमूने की जांच करने पर की जा सकीं थीं. चट्टानों के नमूनों के विश्लेषण से पता चला है कि PETM के शुरुआती चरणों में पारे के स्तरों में काफी गिरावट हुई थी. इससे पता चला कि कम एक दूसरे कार्बन के भंडार ने इस घटना के दौरान बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया होगा. 

शोध से पता चला कि पृथ्वी के तंत्र में शीर्ष बदलाव बिंदु की मौजूद हैं जो अतिरिक्त कार्बन भंडारों में से उत्सर्जन का कारण बन सकते हैं जो पृथ्वी की जलवायु में अभूतपूर्व रूप से उच्च तापमान ला सकते हैं. कोर्नवॉल में एक्सेर यूनिवर्सिटी के पेनरिन कैम्पस के कैम्बोर्न स्कूल ऑफ माइन्स स्टडी के शोधकर्ता और इस अध्ययन के सहलेखक डॉ केंडर ने बताया कि CO2, मीथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसें PETM के शुरुआत में केवल कुछ हजार सालों में वायुमंडल में उत्सर्जित हुई थी. 

डॉ केंडर ने बताया, “हम इस अवधारणा को जांचना चाहते थे कि विशाल ज्वालामुखी प्रस्फुटन ने ने इस प्रत्याशित ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन किया था. चूंकि ज्वालामुखी भी विशाल मात्रा में पारे का उत्सर्जन करते हैं, हमने अवसादों में पारे और कार्बन की मात्रा को भी माप जिससे हमें पता चल सके कि क्या उस सम कोई ज्वालामुखी प्रस्फुटन की घटना हुई थी. हमें यह जानकर हैरानी हुई कि हमें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और बढ़ते ज्वालामुखियों के बीच एक संबंध भी नहीं मिला. 

शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्वालामुखियों की घटनाएं PETM की शुरुआती दौर में ही हुई थीं. इसलिए ज्वालामुखियों के बाद किसी दूसरे स्रोत से ही ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित हुई होंगी. उत्तर सागर के गहराई के नए अवसादों के विश्लेषण से पता चला कि इनमें पारे की मात्रा बहुत अधिक स्तर पर थी. इन नमूनों ने दर्शाया कि पारे स्तरों में बहुत सारे शीर्ष PETM के पहले और उसके शुरू होने के बाद दिखे. इससे पता चला कि इनकी शुरुआत ज्वालामुखी गतिविधियों से हुई थीं. 

डॉ केंडर ने बताया कि वे इस शोध को करने में इसलिए सफल रहे क्योंकि उनकी टीम को अवसादों में उस समय के अवशेष अच्छे से संरक्षित अवस्था में मिले जिसमें जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ डेनमार्क एंड ग्रीनलैंड की बहुत बड़ी सहयोगी भूमिका थी. इससे शोधकर्ता वहां कार्बन रिसाव और पारे की स्तरों की सटीक जानकारी भी निकालने में सफल रहे. वैसे भी उत्तरी सागर का इलाका PETM में हुए ज्वालामुखी उत्सर्जन के पास मौजूद था, यह शोधकर्ताओं के लिए आदर्श जगह साबित हुई.

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