विचार / लेख
-डॉ. दिनेश मिश्र
ग्रीन पटाखे या ईको फ्रेंडली पटाखे वे पटाखे है जिनसे सामान्य पटाखों की तुलना में प्रदूषण कम होता है और पर्यावरण के लिए बेहतर होते हैं। इसलिए ऐसे पटाखों को ग्रीन पटाखा या इको फ़्रेंडली पटाखे कहा जाता है।
ग्रीन पटाखों को विशेष तरह से तैयार किया जाता है और इनके जरिए 30 से 40 फीसद तक प्रदूषण कम होता है। ग्रीन पटाखों में वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले हानिकारक रसायन नहीं होते हैं।
ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं. जो आवाज से लेकर दिखने तक पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है. नीरी ने ग्रीन पटाखों पर कुछ वर्ष पहले इस सम्बंध में शोध आरम्भ किया था कि सामान्य पटाखे से निकलनेवाली गैस सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड कार्बन मोनो ऑक्साइड और हेवी मेटल्स सल्फर, लेड, क्रोमियम, कोबाल्ट, मरकरी मैग्निशियम का कितना दुष्प्रभाव होता है .
वैसे भी सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फ़र गैस निकलती है, तथा नीरी के शोध का लक्ष्य इनकी मात्रा को कम करना था. ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले रसायन बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं सी. एस आई आर और नीरी ने कुछ ऐसे फ़ॉर्मूले बनाए हैं जो हानिकारक गैस कम पैदा करते हैं.
ग्रीन पटाखे ना सिर्फ आकार में कुछ छोटे होते हैं, बल्कि इन्हें बनाने में रॉ मैटीरियल (कच्चा माल) का भी कम इस्तेमाल होता है. इन पटाखों में पार्टिक्यूलेट मैटर (PM) का विशेष ख्याल रखा जाता है ताकि पटाखे छोड़ने के बाद कम से कम प्रदूषण फैले. वातावरण में ऊष्मा उत्सर्जन और शोर कम हो एवं इस तरह के पटाखों से निकलने वाला पीएम 2.5 भी कम हो।
एक और बात सामान्य पटाखों में से कुछ में लेड, बेरियम, ओर पारा अधिक मात्रा में होता है जिनके कारण जो धुआ निकलता है उसमे पीएम 2.5 का स्तर बढ़ जाता है .और कुछ सामान्य पटाखों में परक्लोरेट, नाइट्राइट और क्लोराइड काफी मात्रा में होता हैं। इसके अलावा बेरियम भी कई पटाखों में मिलता हैं।
ग्रीन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट का इस्तेमाल नहीं होता और इसमें एल्युमिनियम की मात्रा भी काफी कम होती है. इनमें राख का इस्तेमाल नहीं किया जाता. दावा किया जा रहा है कि इन पटाखों को छोड़ने से पीएम 2.5 और पीए 10 की मात्रा में 30 से 35 पर्सेंट की गिरावट आती है.
सीएसआईआर वाले ग्रीन पटाखों में नाइट्रोजन बेस्ड नाइट्रो सेलुलोस हैं, जो कम प्रदूषण करेगा
ईको-फ्रेंडलीपटाखों से 35-40 डिसेबल आवाज के होते हैं, और। उसमें से धुआं अधिक नहीं निकलता है. वैसे जानकारी के लिए बता दें, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का भी कहना है कि शहरी आबादी में 34 से 45 डेसिबल आवाज के पटाखे फोड़ने चाहिए. ये कानों को नुकसान नहीं पहुंचाते. जबकि इंडस्ट्रियल इलाके में ये साउंड का लेवल 50 से 60 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए.
ग्रीन पटाखे
चार तरह के बनाए गए हैं, पहला, सेफ़ वाटर रिलीज़र: ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे. सेफ़ वाटर रिलीज़र नाम नीरी ने दिया है. पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है.
दूसरे हैं स्टार क्रैकर: स्टार क्रैकर का फुल फॉर्म है सेफ़ थर्माइट क्रैकर. इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग होता है, जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं. इसके लिए ख़ास तरह के कैमिकल का उपयोग होता है
सफल (SAFAL) पटाखे: इन पटाखों में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है. इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी सफल ( SAFAL) का नाम दिया है.
चौथे हैं अरोमा क्रैकर्सः इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ़ हानिकारक गैस कम पैदा होगी बल्कि ये अच्छी खुशबू भी देते हैं.
ग्रीन पटाखे फ़िलहाल भारत के बाज़ारों में उपलब्ध हैं. पर अभी ये जानकारी न होने से लोकप्रिय नहीं हो पाए पर यकीन मानिए आने वाला कल ग्रीन पटाखों या इको फ़्रेंडली पटाखों का ही है
(लेखक वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ हैं.)