विचार / लेख

बस, ये आती-जाती सांस ही सच है...
03-Nov-2021 12:39 PM
बस, ये आती-जाती सांस ही सच है...

-दिनेश श्रीनेत

अकेलेपन, बिछोह और बीमारियों से लड़ते-जूझते रहने के डेढ़-पौने दो वर्ष बाद रौनक फिर से दिख रही है। उत्सव मनाकर जैसे हम साबित करना चाहते हैं कि महामारी से हम टूटे नहीं हैं बल्कि फिर उठ खड़े हुए हैं। दो लहरों के बीत जाने के बाद अभी तीसरी या चौथी लहर का अंदेशा बाकी है। हर तूफान अपने पीछे तबाही के बहुत सारे निशान छोड़ जाता है, ये महामारी भी छोड़ गई है।

हर आपदा जीवन के लिए कुछ सबक भी दे जाती है। अज्ञेय के शब्दों में ‘दु:ख सबको माँजता है।’ यह हमें भीतर से खाली और हल्का कर देता है। किसी नए सुख महसूस करने और नई आपदाओं को स्वीकार करने लायक एक बेहतर इनसान बनाता है। गुजरी आपदा ने मेरे लिए भी कुछ सबक छोड़े हैं। कोई बड़ी बात नहीं है, बहुत छोटी-छोटी बातें हैं पर मुझे लगता है कि अहम हैं सो साझा कर रहा हूँ।
 
अजनबियों को देखकर मुस्कुरायें। क्योंकि जब तक यह जीवन है तभी तक इस दुनिया में इतने सारे लोग हैं, जो अलग कपड़े पहनते हैं, अलग तरीके से हँसते और दुखी होते हैं, अलग तरीके से आपकी जिंदगी में दाखिल होते हैं। हर नया इनसान आपके लिए एक नई दुनिया का दरवाजा खोलता है। आपके सबसे बेहतरीन दोस्त भी कभी अजनबी थे, बस वह एक पल था जब आप अपरिचय की वह सीमा रेखा लांघकर आगे बढ़े। बेहतर हो जब तक जिएँ नए दोस्त बनाएं, भले वह जीवन भर के लिए हों, कुछ सालों के लिए या कुछ घंटों के लिए। वह ऑफिस में मिलें, पड़ोस में या ट्रेन का इंतजार करते वक्त।

जिन्होंने आपके साथ कुछ बुरा किया है, उनसे नाराज़ होने की बजाय उन पर तरस खाएं। सोचें कि जीवन इतना छोटा है कि उनमें से बहुत अपने गलतियों पर बिना किसी बोध के इस दुनिया से चले जाएंगे। यानी कि उनके जीवन में आत्मसाक्षात्कार का एक पल भी नहीं आएगा कभी। बिना किसी चेतना, बोध या पश्चाताप के इस जीवन का क्या मोल है?

गलती करें। हम सब गलती करने से डरते हैं। जीवन एक बंधी लीक पर चलता रहता है। हर भूल या गलती जीवन में एक नया द्वार खोल देती है। अक्सर गलती के पीछे मकसद अच्छा ही होता है सिर्फ हम उस मकसद तक पहुँच नहीं पाते, हां उसके थोड़ा करीब जरूर चले जाते हैं। गलती न करने का गुरूर हमें घमंडी बनाता है और जीवन के प्रति अवास्तविक और गैर-ईमानदार नजरिया विकसित हो जाता है। बेहतर हो खुद को परफेक्ट न मानें और सबके सामने यह स्वीकार करें कि आप परफेक्ट नहीं हैं।

भूल जाएं। बहुत सारी बातों को, लोगों को, स्मृतियों को। बहुत कुछ आप याद नहीं रखना चाहते हैं। उनका बोझ लेकर जीने से कोई फायदा नहीं है। जीवन की हर तकलीफ आपके भीतर बहुत कुछ जो जर्जर हो चुका है अपने साथ बहाकर ले जाती है। उसे बह जाने देना चाहिए। जो बाकी रह गया दरअसल वही आप हैं।

एकांत का सम्मान करें। खुद के और दूसरों के एकांत का भी। अपने आप को समय दें। अपने सेल्फ को रेस्पेक्ट दें। आम तौर पर हम अपने वज़ूद को न वक्त देते हैं और न ही उसे सम्मान देते हैं। मृत्यु समेत जीवन में ऐसे बहुत से पल आते हैं जब हमारा यह ‘सेल्फ’ ही हमारे साथ रह जाता है। तब हम उससे भयभीत होते हैं। गलती भी हमारी ही है, हमने कब उसका हालचाल पूछा? कब एकांत में खुद से बातें कीं? कब हमने अपने-आप को, अपनी पूरी मानवीय गरिमा को उसका वह सम्मान दिया, जिसका कि वह हकदार है?

अंत में, जीवन एक स्तरीय नहीं बहुस्तरीय है। एक जीवन में हम चाहें तो बहुत सारे जीवन जी सकते हैं। यह हमारे ऊपर है कि हम अपने सरल रैखिक जीवन को कितनी गहराई और बहुस्तरीयता से जी सकते हैं। हर नया अनुभव, हर नई यात्रा, हर नया इनसान हमारे जीवन में एक और आयाम जोड़ देता है।

मुझे लगता है कि हमें इस जीवन को एक यात्रा की तरह जीना चाहिए, बिना किसी मोह के क्योंकि हमारी तरह इस धरती पर करोड़ों-खरबों दिल धडक़ रहे हैं, अंधेरे के इस महासागर में खरबों रोशनियां टिमटिमा रही हैं, प्रज्ज्वलित हो रही हैं और बुझ रही हैं। इस पूरे जीवन, इस विशाल धरती, ब्रह्मांड को देख-समझ पाने के लिए भी हमारी उम्र बहुत छोटी है। बस, ये आती-जाती सांस ही सच है, यही एक काम पूरी शिद्दत से कर लें। (फेसबुक से)

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