सामान्य ज्ञान
राज्य के नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने के हेतु, अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को मताधिकार (फ्रैंचाइज) कहते हैं। जनतांत्रिक प्रणाली में इसका बहुत महत्व होता है। जनतंत्र की नीवं मताधिकार पर ही रखी जाती है। इस प्रणाली पर आधारित समाज व शासन की स्थापना के लिये आवश्यक है कि प्रत्येक व्ययस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार प्रदान किया जाय।
19 सितम्बर सन 1893 ईसवी को संसार में पहली बार महिलाओं को मत देने का अधिकार प्राप्त हुआ। ये निर्णय न्यूजीलैंड में लिया गया। जहां चुनाव सुधार कानुन द्वारा महिलाओं को यह अधिकार दिया गया। न्यूजीलैंड की महिलाओं ने 28 नवम्बर सन 1893 में होने वाले चुनावों में पहली बार अपने इस अधिकार का प्रयोग किया। उक्त चुनाव में 90 हज़ार महिलाओं ने वोट डाले।
वहीं भारतीय उपमहाद्वीप में 1926 में महिलाओं का मताधिकार प्राप्त हुआ। भारतीय संविधान के अनुच्छेद (आर्टिकल) 325 व 326 के अनुसार प्रत्येक वयस्क नागरिक को, जो पागल या अपराधी न हो, मताधिकार प्राप्त है। किसी नागरिक को धर्म, जाति, वर्ण, संप्रदाय अथवा लिंग भेद के कारण मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
नवीन संविधान लागू होने के पूर्व भारत में 1935 के गवर्नमेंट ऑव इंडिया ऐक्ट के अनुसार केवल 13 प्रतिशत जनता को मताधिकार प्राप्त था। मतदाता की अर्हता प्राप्त करने की बड़ी बड़ी शर्तें थीं। केवल अच्छी सामाजिक और आर्थिक स्थिति वाले नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया जाता था। इसमें विशेषतया वे ही लोग थे जिनके कंधों पर विदेशी शासन टिका हुआ था।