सामान्य ज्ञान
एरण्ड जिसे अरण्य, अरण्डी , अण्डी आदि और बोलचाल की भाषा में अण्डउआ भी कहते हैं, एक औषधीय पौधा है। इसका पेड़ छत्तीसगढ़ में भी बहुतायक में मिलता है। इसका पेड़ 8 से 15 फीट ऊंचा होता है। इसके पत्तों और शाखों पर भूरा-भूरा पदार्थ लिपटा रहता है जो छूने से हाथ में आ जाता है। इसके पत्ते आकार में बड़े और पांच चौड़ी फांक वाले होते हैं।
इसमें लाल और बैंगनी रंग फूल आते हैं। जिसमें कांटेदार हरे आवरण चढ़े फल लगते हैं। इसके पेड़ लाली लिए होते हैं, तो रक्त एरण्ड और सफेद हो तो श्वेत एरण्ड कहलाता है। जिन वृक्ष के बीज बड़े होते हैं उनका तेल जलाने के काम आता है। जिनके बीज छोटे होते हैं उनका तेल औषधीय उपयोग में लाया जाता है। एरण्ड का तेल एक निरापद रेचक होता है। यह वातनाशक औषधि है। वात प्रकोप में उत्पन्न कब्ज में और वात व्याधियों में कम मात्रा में इसका उपयोग औषधी के रूप में किया जाता है। इसके अलावा अनेक रोगों में भी इसके इस्तेमाल किया जाता है।
विविध भाषाओं में नाम-संस्कृत-एरण्ड , व्याघ्रपुच्छ, आमण्ड, हिन्दी- अरण्ड, अण्डी, अरण्डी, मराठी- एरण्ड, गुजराती- एरण्डोस दिवेलगो, बांगला- भेरेंडा, तेलुगु-आमुडामू, मलयालम- आवणक्का, फारसी- वेज अंजीर, इंग्लिश- केस्टर ऑइल प्लॉन्ट, लैटिन-रिसिनस कम्युनिस।
अरण्ड की लाल और सफेद जातियों के अलावा एक और जाति होती है जिसे व्याघ्र एरण्ड कहते हैं। इसका उपयोग बहुत कम किया जाता है।