सामान्य ज्ञान
भारत में डबल डेकर ट्रेनों की शुरूआत 1975 में की गई थी। उस समय इसका उद्देश्य कम दूरी की यात्री गाडियों में ज्यादा यात्रियों को ढोना था। भारतीय रेल के इस प्राथमिक लक्ष्य को तो प्राप्त कर लिया गया लेकिन ये गैर वातानुकूलित ट्रेन यात्रियों के बीच बहुत अधिक पसंद नहीं की गई। इसका प्रमुख कारण निचले स्तर से धुएं का प्रवेश और प्लेटफार्म स्तर की ऊंचाई पर बाहर के दृश्यों का न दिख पाना था।
अपने लंबे अनुभवों के साथ भारतीय रेल ने फिर एक बार डबल डेकर ट्रेनों को प्रारंभ करने की योजना बनाई है जिसमें गैर वातानुकूलित डब्बों में आ रही समस्याओं को वातानुकूलित रूप में दूर किया जा सके। रेल मंत्री ने वर्ष 2009 के रेल बजट में वातानुकूलित डबल डेकर ट्रेनों की शुरूआत की घोषणा की। भारतीय रेल के डिजाईन इंजीनियरों ने भारतीय रेल की एक उत्पादन ईकाई रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला ने सिर्फ 9 महीने के रिकार्ड समय में पहला प्रोटो टाईप वातानुकूलित डबल डेकर ट्रेन को तैयार कर लिया। सभी आवश्यक परीक्षणों को पूर्ण करने के बाद अक्तूबर 2011 में हावडा और धनबाद के बीच पहली वातानुकूलित डबल डेकर ट्रेन की शुरूआत की गई। इस ट्रेन के एक उन्नत संस्करण का विकास कर जयपुर और दिल्ली तथा अहमदाबाद और मुम्बई के बीच इसकी सेवाएं प्रारंभ की गई। निकट भविष्य में हबीब गंज-इंदौर और चैन्नई-बंगलौर के बीच भी ऐसी सेवा प्रारंभ करने की योजना है। यात्रियों के अनुकूल डिजाईन के साथ वातानुकूलित डबल डेकर ट्रेन प्रत्येक कोच में 120 यात्रियों को ले जा सकती है जो शताब्दी चेयर कार के 78 यात्रियों से तुलना करने पर 50 फीसदी अधिक है।
इन नई वातानुकूलित डिब्बों में कई तकनीकी खूबियां जैसे हल्के वजऩ वाली स्टेनलेस स्टील बॉडी और भीतरी साज सज्जा हैं। एयर स्प्रिंग के साथ यूरो फिल्मा डिजाईन के डिब्बे से यात्रियों को सफर में बेहतर आराम मिलता है। यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक-दूसरे के ऊपर न चढऩे वाले और दुर्घटना की स्थिति में इसको वहन करने वाले डिब्बे भी प्रदान किए गए हैं।