सामान्य ज्ञान
शरीर में किसी भी स्थान पर दर्द होने पर हम दर्द निवारक गोलियां खाते हैं जिससे हमें आराम मिलता है।
दर्द एक अप्रिय संवेदी और भावनात्मक अनुभव है जो कि वास्तविक या संभावित ऊतकों के नुकसान, या ऐसी क्षति के रूप में वर्णित है। दर्द शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा है, विशेष रूप से हानिकारक स्थिति से बचने के लिए। शरीर में बड़े व्यास की तंत्रिकाओं और पतले व्यास की तंत्रिकाओं के बीच में टी कोशिकाएं तथा निरोधात्मक कोशिकाएं होती हैं। जब वास्तविक या संभावित ऊतकों के नुकसान के कारण टी कोशिकाओं की उत्तेजना निरोधात्मक कोशिकाओं से एक महत्वपूर्ण स्तर से अधिक हो जाता है, तो हमें दर्द की अनुभूति होती है।
दर्द निवारक दवाएं टी कोशिकाओं को उत्तेजित करने वाले एंजाइमों को रोक कर दर्द को दूर करती हैं। पेनकिलर्स या एनाल्जेसिक वे दवाएं हैं , जिनका इस्तेमाल दर्द से राहत पाने में किया जाता है। इन्हें बनाने में मॉर्फिन जैसे नारकोटिक्स , नॉन स्टेरॉइडल ऐंटी इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स और एसेटैमिनोफेन जैसे नॉन नारकोटिक्स का इस्तेमाल किया जाता है।
पेनकिलर्स दो तरह से काम करती हैं। पहला ब्रेन की ओर जाने वाले दर्द के सिग्नल को ब्लॉक कर देती हैं , जिससे रोगी को दर्द का अहसास नहीं हो पाता और दूसरा ब्रेन में सिग्नल के इंटरप्रिटेशन सिस्टम में छेड़छाड़ कर देती हैं और रोगी को लगता है कि उसे दर्द से राहत मिल गई।
पेनकिलर्स दर्द में तुरंत राहत पहुंचाती हैं। यही वजह है कि इंसान जरा - सी दिक्कत होते ही इनका इस्तेमाल करने लगता है और धीरे - धीरे उसे इनकी आदत पड़ जाती है। लंबे समय तक इस्तेमाल करने से दिमाग और शरीर इन दवाओं पर निर्भर करने लगते हैं। इस स्थिति को एडिक्शन यानी लत कहते हैं। कुछ दवाओं को लेने से मूड अच्छा होता है और नींद भी आती है। लगातार लेते रहने से ये दवाएं अल्कोहल का काम करने लगती हैं।
जरूरत से ज्यादा लेने पर पेनकिलर्स घातक हो सकती हैं। एक साल तक अगर पेनकिलर्स को रोज इस्तेमाल किया जाए, तो यह बेहद नुकसानदायक हो सकती हैं।