सामान्य ज्ञान
कोरल रीफ अनेक समुद्री जीवों का प्राकृतिक निवास स्थल है। इन्हें समुद्र का वर्षावन कहा जाता है। इनमें हजारों जानवर और पौधे बसर करते हैं, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की वजह से 20 फीसदी कोरल रीफ गायब हो गए हैं। यह सूक्ष्म समुद्री जीवों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से बनता है। लेकिन चुनिंदा 25 अंतरराष्ट्रीय य संस्थाओं के नेटवर्क द्वारा तैयार एक रिपोर्ट के मुताबिक आज दुनिया के 75 फीसदी कोरल रीफ का अस्तित्व वैश्विक और स्थानीय कारणों की वजह से खतरे में है। स्थानीय कारणों में प्रमुख है-अत्यधिक मात्रा में मछलियों का मारा जाना।
वैश्विक वजह है जलवायु परिवर्तन के कारण संसार के तापमान में बढ़ोतरी। शोध में आगाह किया गया है कि अगर इन दो तत्वों पर ध्यान नहीं दिया गया तो 2030 तक दुनिया के 90 फीसदी कोरल रीफ का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा और 2050 तक यह आंकड़ा 95 फीसदी तक पहुंच सकता है। कोरल रीफ के महत्व को समझकर ही सौ से अधिक देशों में एक लाख 50 हजार किलोमीटर के तटीय क्षेत्रों में इसके संरक्षण के लिए विशेष उपाय किए गए हैं। कोरल रीफ के कारण समुद्र की लहरों से तट का कटाव कम होता है। आंधी से भी कम नुकसान होता है।
हाल में गुजरात सरकार द्वारा कराई गई एक स्टडी में यह तथ्य उभर कर सामने आया कि कच्छ की खाड़ी में 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जो कोरल रीफ फैला हुआ है , वह राजस्व कमाने का एक बड़ा जरिया बन सकता है। इस क्षेत्र में मत्स्य पालन और पर्यटन से राज्य सरकार सालाना 79 लाख 50 हजार रुपये कमा सकती है। इस बात को ध्यान में रखकर गुजरात सरकार राज्य के 20 किलोमीटर तट में कृत्रिम कोरल रीफ लगाने की योजना बना रही है। कच्छ की खाड़ी में कोरल रीफ रंगहीन होता जा रहा है जो इसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा संकट है। कोरल रीफ को अगली नाम के एक कीड़े की वजह से एक खास रंग प्राप्त होता है। लेकिन जब समुद्र के पानी का तापमान बढ़ जाता है तो यह कीड़ा वहां नहीं रह पाता है। ऐसी स्थिति में कोरल रीफ रंगहीन हो जाता है और इसके निर्माण की प्रक्रिया रुक जाती है। जो कोरल रीफ 60 से 70 फीसदी तक रंगहीन हो जाता है , उसके दोबारा क्रियाशील होने की गुंजाइश बनी रहती है। लेकिन जो पूरी तरह से रंगहीन हो जाता है , वह नष्ट जाता है। अंडमान निकोबार द्वीप के पास कोरल रीफ व्यापक पैमाने पर रंगहीन होता जा रहा है।