सामान्य ज्ञान
चंद्रगिरि नए किस्म की कॉफी का पौधा है जिसे दिसंबर 2007 में केंद्रीय कॉफी अनुसंधान संस्थान (सीसीआरआई) पेश किया था। चंद्रगिरि पौध जब भारत के कॉफी बागानों में व्यावसायिक उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया गया तो उनका अच्छा परिणाम निकला और इसके बीज की भारी मांग होने लगी।
चंद्रगिरि की झाडिय़ां छोटी किंतु कॉफी की अन्य किस्मों कावेरी और सान रेमन की तुलना में घनी होती हैं। इसके पत्ते बड़े, मोटे और गहरे हरे रंग के होते हैं। कॉफी की यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले लंबे और मोटे बीज पैदा करती है। कॉफी उत्पादकों से इस किस्म के पैदाबार के बारे में बहुत उत्साहजनक जानकारी मिली है। इसकी अनुवांशिकी एकरूपता और शुरूआती पैदावार भी अच्छी होती है। इसके अलावा अधिकतर उत्पादक चंद्रगिरि को अपने खेतों में खाली समय की भरपाई के लिए इस्तेमाल करते हैं।
यह भी देखा गया है कि अगर खेती के उचित तरीके अपनाए जाएं तो कावेरी एचडीटी और चंद्रगिरि जैसी विभिन्न घनी झाडिय़ों से उपज में कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। चंद्रगिरि की फलियां अच्छे किस्म की होती हैं और औसतन 70 प्रतिशत फलियां ए स्तर की होती हैं, इनमें से 25-30 प्रतिशत एए स्तर की होती हैं। अन्य किस्मों की तुलना में ए स्तर की फलियां 60-65 प्रतिशत होती हैं जिनमें से 15-20 प्रतिशत एए स्तर की होती हैं।
अनुसंधानकर्ताओं को यह भी पता चला है कि चंद्रगिरि में बीमारी अन्य किस्मों के मुकाबले बहुत देर से लगती है। इसके अलावा बीमारी की गंभीरता बहुत कम (5 प्रतिशत से भी कम) होती है। लेकिन कॉफी के पौधे के तनों में छिद्र करने वालो सफेद कीटों के मामले में चंद्रगिरि भी अन्य किस्मों की तरह ही है। भारत और दक्षिण एशिया में ये कॉफी के सबसे खतरनाक कीट होते हैं। लेकिन उत्पादन की आदर्श परिस्थितियों यानी समुद्र से एक हजार मीटर की ऊंचाई वाले खेतों में कीट लगने की घटनाएं कम होती हैं।