सामान्य ज्ञान
दुनिया में वाहनों का ईंधन पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सबसे बड़े कारणों में से एक है। ज्वलनशीलता बढ़ाने के लिए गैसोलीन में एमटीबीई ऑक्सिजेनरेटर का इस्तेमाल किया जाता है। यह कैंसरजनक और नॉन-बायोडिग्रेडेबल माना जाता है।
पूरे विश्व में एमटीबीई के बदले एथेनॉल के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी जा रही है। एथेनॉल दोनों मामलों में एमटीबीई की तुलना में सुरक्षित है। उम्मीद जताई जा रही है कि एथेनॉल का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल पेट्रोलियम पर निर्भरता कम करने में भी मददगार साबित होगा । इससे ऊर्जा सुरक्षा को भी बढ़ावा मिलेगा। इसलिए सरकार ने गैसोलीन में 5 फीसदी एथेनॉल मिलाया जाना अनिवार्य कर दिया है। साथ ही इसे बढ़ाकर 10 फीसदी करने का लक्ष्य भी रखा है। कार्बन मोनोऑक्साइड के उत्सर्जन को बेअसर करने के लिए गैसोलीन मिश्रण में आवश्यक ऑक्सिजेनरेशन को पूरा करने के लिए एथेनॉल की 5 फीसदी मात्रा आवश्यक है।
एथेनॉल और गैसोलीन की की मौजूदा कीमतों एथेनॉल के प्रति लीटर इस्तेमाल से तेल विपणन कंपनियों को 11 रुपये की बचत होती है। इस तरह पेट्रोलियम उद्योग में अंडर-रिकवरी के भार को कम करने में भी एथेनॉल मिश्रण योजना फायदेमंद होगी। भारत में एथेनॉल का उत्पादन शीरे से किया जाता है। एथेनॉल उद्योग को बढ़ावा दिए जाने से शीरा, कृषि उत्पादों और कृषि अपशिष्ट की मांग भी बढ़ेगी। इससे किसानों की आमदनी को अतिरिक्त सहारा मिलेगा। सामान्य चीनी उत्पादन के मौसम में देश में 2.4 अरब लीटर एल्कोहल उत्पादन के लिए मोलासेस की आपूर्ति पर्याप्त होती है।