सामान्य ज्ञान
मैंग्रोव ऐसे पौधे हैं जो अत्यधिक लवणता, ज्वारभाटा, तेज हवा, अधिक गर्मी और दलदली भूमि में भी जिंदा रह जाते हैं। इन स्थितियों में अन्य पौधों के लिए जिंदा रह पाना मुश्किल होता है। मैंग्रोव समुद्र के छिछले किनारे, लैगूनों और दलदली भागों वाले ज्वारभाटा क्षेत्रों में पाया जाता है। सभी समुद्रतटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मैंग्रोव लगाए गए हैं। भारत में विश्व के कुछ सर्वश्रेष्ठ मैंग्रोव पाए जाते हैं।
देश में मैंग्रोव के सर्वाधिक आच्छादन में पहला स्थान पश्चिम बंगाल का है और उसके बाद गुजरात तथा अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का स्थान है। हालांकि सभी समुद्रतटीय क्षेत्र मैंग्रोव लगाए जाने के लिए उपयुक्त नहीं हैं, क्योंकि मैंग्रोव के लिए लवणीय और ताजा जल के एक समुचित मिश्रण और दलदल की जरूरत होती है। सरकार ने देश भर में सघन संरक्षण और प्रबंधन के लिए मैंग्रोव के 38 क्षेत्रों की पहचान की है। तमिलनाडु में पिचावरम, मुथुपेट, रामनाड, पुलीकाट और काजूवेली जैसे मैंग्रोव क्षेत्रों की पहचान की गई है।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी प्रणाली जैव-विविधता से परिपूर्ण है और यह बाघ, डॉल्फिन, घडिय़ाल आदि जैसी जोखिम वाली प्रजातियों सहित अन्य बहुत-सी प्रजातियों की शरणस्थली है, जिसमें स्थलीय और जलीय दोनों प्रजातियां शामिल हैं। मैंग्रोव फिन मछली, शेल मछली, क्रस्टासिन और मोलस्कों के लिए रहने का स्थान भी है। इन पारिस्थितिकी प्रणालियों द्वारा समुद्रतटीय जल में बड़ी मात्रा में जैविक और अजैविक पोषक तत्वों के निष्कर्षण के कारण मैंग्रोव के वनों को विश्व में सर्वाधिक उत्पादक पारिस्थितिकीय प्रणाली के रूप में जाना जाता है।
कई प्रकार की पारिस्थितिकीय सेवाएं प्रदान करने के अलावा मैंग्रोव समुद्रतटीय क्षेत्रों को कटाव, ज्वारभाटा और सुनामी से बचाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। यह भूमि उपचय के संदर्भ में मददगार है। मछली के अलावा यह शहद, मोम और वृक्ष से प्राप्त क्षार का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है। वर्तमान में कृत्रिम और प्राकृतिक दोनों ही घटकों के कारण यह सर्वाधिक जोखिम वाली पारिस्थितिकियों में से एक है।