सामान्य ज्ञान
रेट्रो वायरस को मुख्यतौर पर एचआईवी संक्रमण से बचाव के लिए विकसित किया गया है। जब इस तरह की कई दवाइयों को साथ मिला दिया जाता है, तो वह एंटी रेट्रोवायरस थेरेपी या एचएएआरटी कहलाता है। पहली बार अमेरिकी स्वास्थ्य संस्था ने एड्स के रोगियों को इस दवा के इस्तेमाल का सुझाव दिया था।
एंटी रेट्रोवायरल दवाइयों के भी विभिन्न प्रकार हैं, जो एचआईवी के विभिन्न स्टेजों के लिए इस्तेमाल होते हैं। अब अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने एड्स फैलाने वाले एचआईवी वायरस के संभावित इलाज की ओर पहला कदम उठाया है। एचआईवी वायरस कई सालों तक मरीज के शरीर में बिना कोई हरकत किए पड़ा रहता है, जिससे उसका इलाज करने में मुश्किलें आती हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, कैंसर के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली दवा ‘वोरीनोस्टैट’ के इस्तेमाल से इस सुस्त पड़े वायरस को बाहर निकाला जाता है। इन वैज्ञानिकों ने आठ मामलों में इस वायरस पर हमला कर उसे सामान्य एंटी रेट्रोवायरल दवाओं से खत्म कर दिया, लेकिन वैज्ञानिकों की इस टीम का कहना है कि दुनिया में एचआईवी से ग्रस्त तीन करोड़ लोगों के इलाज के लिए कारगर दवा को विकसित करने के लिए कई सालों तक शोध करने की जरूरत पड़ सकती है।
एचआईवी यानी ह्यूमन इम्यूनोडिफीशिएंसी वायरस मानव की रोग प्रतिरोधक शक्ति को कम करने वाला यह विषाणु एक रेट्रोवायरस है, जो मानव की रोग प्रतिरोधक प्रणाली की कोशिकाओं (मुख्यत: सीडी 4 पॉजिटिव टी) को संक्रमित कर उनके काम करने की क्षमता को नष्ट या क्षतिग्रस्त कर देता है। यह विषाणु मुख्यत: शरीर को बाहरी रोगों से सुरक्षा प्रदान करने वाले रक्त में मौजूद टी कोशिकाओं और मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित करता है और धीरे-धीरे उन्हें नष्ट करता रहता है। कुछ वर्षों के बाद यह स्थिति आ जाती है कि शरीर आम रोगों के कीटाणुओं से अपना बचाव नहीं कर पाता और तरह-तरह के संक्रमण से ग्रसित होने लगता है, इस अवस्था को एड्स कहते हैं।