सामान्य ज्ञान
भारत में वर्ष 1926 से पहले महिलाएं किसी भी सभा की सदस्य नहीं हो सकती थीं। सन 1926 में केवल सरकार द्वारा मनोनीत की गई महिलाएं ही विधानसभा की सदस्य हो सकती थीं। उन्हें मताधिकार भी प्राप्त नहीं था। वर्ष 1935 में जब भारत का नया संविधान बना तो नारियों ने भी पुरुषों के समान मत देने के मांग की। उनकी मांग के संबंंध में उस समय कोई सुनवाई नहीं हुई। उनका मताधिकार-उनकी संपत्ति, पति की स्थिति और शिक्षा पर निर्भर था।
1937 के चुनाव में महिलाओं ने सुरक्षित सीटों से चुनाव लड़ा। उस समय देश में मात्र 41 सीटें ही उनके लिए सुरक्षित थीं। 1938 में श्रीमती आर. बी सुब्बारामन राज्य परिषद की और श्रीमती रेणुका राय 1953 में केन्द्रीय व्यवस्थापिका की सर्वप्रथम सदस्य बनीं। आजादी के बाद जब हमारा नया संविधान लागू हुआ, तब नारियों को भी वे सारे अधिकार प्राप्त हो गए, जो संविधान में आम नागरिकों को प्रदान किए गए थे। इससे पहले देश में महिलाओं को किसी भी प्रकार का अधिकार प्राप्त नहीं था। सन् 1937 के अधिनियम के अनुसार विधवाओं और लड़कियों को उनके जीवन पर्यंत संपत्ति में उपभोग के लिए हिस्सा भी मिलने लगा। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का श्रेय श्रीमती इंदिरा गांधी को है। वहीं भारत की पहली महिला राष्टï्रपति बनने का श्रेय श्रीमती प्रतिभा पाटिल को है।