सामान्य ज्ञान
पाता या पातचित्र या पटचित्र ओड़ीशा लोककला की पहचान है। प्राचीन काल में इस कला को राजाओं महाराजाओं का संरक्षण प्राप्त था। विदेशी शासन के समय भारत की अन्य लोककलाओं की तरह इसको भी बहुत क्षति पहुंची लेकिन आज यह पुन: अपनी जड़ें मज़बूत कर रही है।
पंद्रहवी और सोलहवी शताब्दी में जगन्नाथ जी का प्रचार करने के उद्देश्य से यह कला प्रचलित हुई थी। ये कलाकृतियां मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं, भित्तिचित्र या दीवारों पर बनाई जाने वाली कलाकृतियां, पटचित्र या कपड़े पर बनाई जाने वाली कलाकृतियां और ताल पटचित्र या ताड़ के पत्तों बनाई जाने वाली कलाकृतियां। इनके प्राचीन स्वरूप में शुरू से आज तक अधिक परिवर्तन नहीं आया है। हालांकि नए -नए प्रयोग होते रहे हैं।
परंपरागत चित्रकला में राधा, कृष्ण, सरस्वती, दुर्गा और गणेश और भगवान जगन्नाथ की तस्वीरें ज्यादा बनाई जाती हैं ।