सामान्य ज्ञान
पक्षी तथा पक्षियों की जनश्रुतियां भारत की संस्कृति का एक भाग रही हैं। महान भारतीय महाकाव्य, रामायण और महाभारत तथा ऋग्वेद जैसे ग्रंथ पक्षियों के विवरणों से भरे हुए हैं।
पक्षियों के स्थानीय नाम, उनका व्यवहार तथा आदतें (जो हमेशा सही नहीं होती) भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में ज्ञात हैं। उदाहरणार्थ- केरल में 371 प्रजातियों में से 308 के नाम स्थानीय भाषा (मलयालम) में हैं, 53 प्रजातियों के सुस्पष्टï नहीं, किंतु सामूहिक नाम हैं तथा केवल सात दुर्लभ प्रजातियों के कोई मलयालम नाम नहीं हैं। अपनी प्रारंभिक पुस्तक बड्र्स ऑफ सौराष्टï्र में धर्मकुमार सिंह ने उन सभी 435 प्रजातियों के गुजराती नामों का उल्लेख किया है, जो उन्हें सौराष्टï्र में मिलीं।
हिंदी में 503 पक्षी प्रजातियां पहचानी गई हंै, जिससे सिद्घ होता है कि भारतीयों को पुरातन काल से ही स्थानीय पक्षियों का कुछ ज्ञान था तथा कई प्रजातियां विशेष रूप से पहचानी जाती थी। मध्य काल में सत्तासीन मुगल शहंशाह (मध्य 16 वीं से मध्य 19 वीं शताब्दी) विशेषकर बाबर तथा जहांगीर, प्राकृतिक इतिहास के उत्सुक निरीक्षक थे।
भारत में मुगल वंश के संस्थापक बाबर मंत्रमुग्ध करने वाली किसी भी चीज का विस्तृत वर्णन करते थे और उसके बारे में अधिक जानकारी के लिए उत्सुक रहते थे। मध्य एशिया से आए बाबर तुरंत पहचान गए कि कुछ बटेर प्रजातियां उनकी जन्मभूमि में पाई जाने वाली प्रजातियों जैसी ही थीं, जबकि चार या पांच भारत की विशिष्टï प्रजातियां थीं।