सामान्य ज्ञान

नादिर शाह
22-Mar-2022 11:41 AM
नादिर शाह

नादिरशाह (या  नादिर कोली बेग़ ) (1688 -1747) फ़ारस का शाह था। उसने सदियों के बाद ईरानी प्रभुता स्थापित की थी। उसने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था और फ़ारस का शाह ही नहीं बना, बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु उस्मानी साम्राज्य और रूसी साम्राज्य को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला। वो भारत विजय के अभियान पर भी निकला था। दिल्ली की सत्ता पर आसीन मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह को हराने के बाद उसने वहां से अपार सम्पत्ति अर्जित की, जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था। इसके बाद वह अपार शक्तिशाली बन गया, लेकिन इसके कुछ समय बाद ही उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में वह बहुत अत्याचारी बन गया था। सन् 1747 में उसकी हत्या के बाद उसका साम्राज्य जल्द ही तितर-बितर हो गया।

मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह और नादिरशाह के मध्य करनाल का युद्ध 24 फऱवरी, 1739 ई. में लड़ा गया। इस लड़ाई में नादिरशाह की विजय हुई और मुग़ल सम्राट द्वारा शासित क़ाबुल-कंधार प्रदेश पर अधिकार करके पेशावर स्थित मुग़ल सेना का विध्वंस कर डाला गया। जब मुहम्मदशाह को नादिरशाह के आक्रमण की बात बतलाई गई, तो उसने उसे हंसी में उड़ा दिया। उसकी आंखे तब खुलीं, जब नादिरशाह की सेना पंजाब को रौंधती हुई करनाल तक आ पहुंची थी। मुहम्मदशाह ने अपनी सेना उसके विरुद्ध भेजी, किंतु संवत 1769 (24 फऱवरी, 1739) में उसकी पराजय हो गई। नादिरशाह ने पहले 2 करोड़ रुपया हर्जाना देने की मांग की थी, किंतु उसके स्वीकार होने पर वह 20 करोड़ मांगने लगा।

मुग़लों का  खज़़ाना भी उस काल में ख़ाली हो गया था, अत: 20 करोड़ कैसे दिया जा सकता था। जिसके कारण नादिरशाह ने दिल्ली को लूटने और वहां नर संहार करने की आज्ञा प्रदान कर दी। उसके बर्बर सैनिक राजधानी में घुस पड़े और उन्होंने लूटमार का बाज़ार गर्म कर दिया। उसके कारण दिल्ली के हज़ारों नागरिक मारे गये और वहां भारी लूट की गई। इस लूट में नादिरशाह को बेशुमार दौलत मिली थी। उसे 20 करोड़ की बजाय 30 करोड़ रुपया नक़द मिला। उसके अतिरिक्त ढेरो जवाहरात, बेगमों के बहुमूल्य आभूषण, सोने-चांदी  तथा अन्य  वस्तुएं उसे मिली थीं। इनके साथ ही साथ दिल्ली की लूट में उसे कोहिनूर हीरा और शाहजहां का  तख्त-ए-ताऊस  (मयूर सिंहासन) भी मिला था।  नादिरशाह के हाथ पडऩे वाली शाही हरम की सुंदरी बेगमों के अतिरिक्त मुहम्मदशाह की पुत्री  शहनाज बानू भी थी, जिसका विवाह उसने अपने पुत्र  नसरूल्ला खां के साथ कर दिया। नादिरशाह   दो महीने तक दिल्ली में लूटमार करता रहा था। उसके कारण मुग़लों की राजधानी उजाड़ और बर्बाद सी हो गई थी। जब वह यहां से जाने लगा, तब करोड़ो की संपदा के साथ ही साथ वह एक हजार हाथीहाथी, 7 हजार घोड़े, 10 हजार ऊंट, 100 खोजे, 130 लेखक, 200 संगतराश, 100 राज और 200 बढ़ई भी अपने साथ ले गया था।

 ईरान पहुंचकर उसने तख्त-ए-ताऊस पर बैठ कर बड़ा शानदार दरबार किया। भारत की अपार सम्पदा को भोगने के लिए वह अधिक काल तक जीवित नहीं रहा था। उसके कुकृत्यों का प्रायश्चित्त उसके सैनिकों के विद्रोह के रूप में हुआ था, जिसमें वह मारा गया। नादिरशाह की मृत्यु सवत 1804 में हुई थी।

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