सामान्य ज्ञान
अथर्ववेद से सम्बन्धित इस उपनिषद में देवगणों द्वारा रुद्र की परमात्मा-रूप में उपासना की गई है। साथ ही सत, रज, तम, त्रय गुणों तथा मूल क्रियाशील तत्व की उत्पत्ति और उससे सृष्टि के विकास का वर्णन किया गया है।
एक बार देवताओं ने स्वर्गलोक में जाकर रुद्र से पूछा कि वे कौन हैं? इस पर रुद्र ने उत्तर दिया- मैं एक हूं। भूत, वर्तमान और भविष्यकाल, मैं ही हूं। मेरे अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। समस्त दिशाओं में, मैं ही हूं। नित्य-अनित्य, व्यक्त-अव्यक्त, ब्रह्म-अब्रह्म, पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, पुरुष-स्त्री, गायत्री, सावित्री और सरस्वती मैं ही हूं। समस्त वेद मैं ही हूं। अक्षर-क्षर, अग्र, मध्य, ऊपर, नीचे भी मैं ही हूं।
ऐसा सुनकर सभी देवताओं ने रुद्र की स्तुति की और उन्हें बार-बार नमन किया। उसे ब्रह्म स्वीकार किया । मान्यता है कि इस उपनिषद को पढऩे से साठ हज़ार गायत्री मंत्रों के जपने का फल प्राप्त होता है। अथर्वशिर उपनिषद के एक बार के जाप से ही साधक पवित्र होकर कल्याणकारी बन जाता है।