सामान्य ज्ञान
ओकीनावा द्वीप जापान का हिस्सा है। जापान में अमरीका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा इसी द्वीप में मौजूद है। इस द्वीप के रहने वाले वर्षों से अमरीकी छावनी को बंद करने की मांग करते आ रहे हैं।
1 अप्रैल वर्ष 1945 ईसवी को अमरीकी सैनिकों ने जापान के ओकीनावा द्वीप पर अपने व्यापक आक्रमण आरंभ किये। द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में किया जाने वाला यह आक्रमण जापान और अमरीका के मध्य अंतिम और बड़ा समुद्री और ज़मीनी युद्ध समझा जाता है। यह युद्ध 83 दिनों तक जारी रहा। इसमें अमरीका के तेरह सौ युद्धपोतों और लगभग दस हज़ार युद्धक विमानों ने भाग लिया। किन्तु जापान वासियों ने अपनी धरती की भरपूर रक्षा की। इस युद्ध में दोनों पक्षों को भारी हानि हुई। जापानियों के प्रतिरोध के कारण अमरीकी अधिकारी इस द्वीप पर आक्रमण करने में विफल रहे तो उन्होंने जापान के हिरोशीमा और नागासागी पर परमाणु बम के आक्रमण का आदेश दे दिया।
ओकीनावा भौगोलिक रूप से जापान और चीन की मुख्य भूमि के बीच में पड़ता है और उसके पूर्व में ताइवान है। करीब तीन सौ साल पहले यहां के राजा को चीन राजवंश द्वारा नियुक्त किया जाता था। 1895 में इस द्वीप को जापान ने अपने कब्जे में ले लिया। तब से यह जापान का हिस्सा बना हुआ है। दूसरे विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद ओकीनावा की सामरिक स्थिति की महत्ता को भांपते हुए अमेरिका ने यहां अपना अड्डा बनाने का फैसला किया और बाद के दिनों में यह द्वीप जापान में अमेरिका का सबसे बड़ा सामरिक बेस बन गया। यहां से अमेरिका न केवल चीन पर निगरानी रख सकता है, बल्कि पूरे एशिया पर नजर रखने में सक्षम है। दूसरी ओर चीन अपने पुराने इतिहास को पलट कर इस द्वीप पर अपना दावा ठोक रहा है। ओकीनावा से अधिक मुखर दावा चीन इस प्रीफेक्चर के शेनकाकू द्वीप पर जाता रहा है, जहां तेल का विशाल भंडार होने का खुलासा हुआ है। शेनकाकू फिलहाल निर्जन द्वीप है और ओकीनावा के इशिगाकी सिटी प्रशासन के अधीन है। दक्षिण चीन सागर में स्थित ओकीनावा का एशिया में सामरिक महत्व इसी से पता लगता है कि यहां के फुटेनमा में स्थित अमेरिकी नौसैनिक अड्डा उसके पूरे जापान में फैले सैन्य अड्डों का 70 फीसदी से अधिक हिस्सा है।