सामान्य ज्ञान

क्या है सेना डाक सेवा
01-Apr-2022 10:56 AM
क्या है सेना डाक सेवा

सशस्त्र सेनाओं के कार्मिकों की तैनाती का स्थान निस्संदेह गुप्त रखा जाता है । वर्तमान में अधिकांश लोगों के लिए मोबाइल और इंटरनेट संचार के पसंदीदा माध्यम बन गए हैं लेकिन यह सुविधा हमारे देश की सीमाओं पर मुस्तैद जवानों को उपलब्ध नहीं है।  उनके पास पत्र भेजने के लिए लिफाफे या अंतर्देशीय पत्र पर सैनिक का नाम, इकाई का विवरण लिखकर और  केयर आफ- 56 या 99 ए पी ओ लिखकर डाक में भेज दिया जाता है। ये ए पी ओ संख्या क्रमश: पश्चिमी या पूर्वी सेक्टर  में तैनाती पर निर्भर करती है। 

56 और 99 ए पी ओ नई दिल्ली से बाहर काम कर रहे दो ( 1 सी बी पी ओ) और कोलकाता ( 2 सी बी पी ओ) केंद्रीय आधार डाक घर हैं जहां डाक छांटी जाती है। इन दोनों के द्वारा सशस्त्र सेनाओं की समूची डाक जरूरतों और कुछ अन्य सहायक अद्र्ध सैनिक संगठनों की ऐसी जरूरतों को भारत के भीतर पूरा किया जाता है।

ए पी एस के दो प्रमुख प्रसिद्ध डाक केंद्रों की शुरूआत का रोचक इतिहास है। अगस्त 1945 में सहयोगी सैनिकों की जापान पर विजय के बाद भारतीय सेना डाक सेवा के रूप में, तब विख्यात सेवा की शुरूआत की गई और इससे मौजूदा 137 एफ पी ओ - क्षेत्रीय डाक घरों को बंद करने की भी प्रक्रिया शुरू हुई।    सिकंदराबाद में 30 जून 1941 को गठित 56 एफ पी ओ जो कि एक मात्र अंतिम एफ पी ओ बचा था, अभी इसे बंद किया जाना था। जापान में इवाकूनी से ब्रिटिश कामनवेल्थ आकुपेशन फोर्स एयर बेस के लौटने के बाद भी इस एफ पी ओ को जारी रखा गया।

24 अक्तूबर 1947 को इसे नया कोड सुरक्षा पता देकर नई दिल्ली में डाक छांटने के नए आधार के लिए केयर ऑफ 56 ए पी ओ के रूप में शुरू किया गया। इसका मकसद 20 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तानी हमलावरों के प्रवेश के फलस्वरूप पंजाब और जम्मू कश्मीर में सैनिकों की डाक ज़रूरतों को पूरा करना था।

इस बीच, सभी आठ पूर्वोत्तर राज्यों, पशिचम बंगाल और अंडमान द्वीप समूह समेत पूर्वी क्षेत्र के लिए पहली अप्रैल 1964 को 2 सी बी पी ओ के गठन के साथ कोड सुरक्षा पते के रूप में केयर आफ 99 ए पी ओ काम करने लगा । यह अपने लगभग 130 एफ पी ओ के साथ मिलकर डाक व्यवस्था का काम करता है।

ए पी एस कोर ने पहली मार्च 2013 को अपना 41वां कोर स्थापना दिवस मनाया। इसकी शुरूआत हालांकि 1856 से मानी जाती है, जब ए पी एस को सबसे पहले तीव्रगामी सेना के युद्धकालीन समेकित संगठन के तौर पर चालू किया गया था। ये सेना फारस की खाड़ी में बुशायर में सबसे पहले और बाद में कई अन्य ऐसे मिशन पर भेजी गई थी।

ए पी एस 1947 तक भारतीय सामान्य सेवा का अंग था, जिसे बंद करके सेना सर्विस कोर के साथ इसकी एक डाक शाखा के रूप में संबद्ध किया गया था। इसके बाद एक निश्चित भूमिका के लिए पहली मार्च 1972 को इसे स्वतंत्र कोर के रूप में स्थापित किया गया।  इसने उड़ते हुए हंस का प्रतीक चिन्ह अपनाया जिसे महाभारत सहित कई भारतीय पौराणिक गाथाओं में संदेशवाहक के रूप में जाना जाता था। इसने अपने चिन्ह पर ध्येय रखा मेल मिलाप।

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