सामान्य ज्ञान
विलायती बबूल को बावलिया, गाण्डा बावल, अंग्रेजी बबूल, रॉयलटी, मिरेकल ट्री एवं जूलीफ्लोरा इत्यादि नाम से जाना जाता है। इसकी फलियों में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। बबूल की फलियों का चूर्ण युक्त पशुआहार एवं संघनित पशु आहार बट्टिका के रूप तैयार कर उपयोग में लिया जा सकता है। पशुओं को इसे खिलाने से आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति होती है। जहां यह आहार सस्ता पडता है, वहीं दूसरी ओर पशुओं के दूध में इसके सेवन से 19 प्रतिशत वृद्धि होती है।
मारवाड़ एवं गुजरात में सौराष्ट्र के कच्छ- भुज और आसपास के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले भूमिहीन एवं छोटे काश्तकारों के लिये अतिरिक्त आय का जरिया बन गया है। यह पेड़ तथा पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितिकीय संतुलन के लिहाज से भी इस क्षेत्र के लिए अनुकूल माना जा रहा है। राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद के जोधपुर स्थित संस्थान केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुंसधान संस्थान ‘‘काजरी‘‘ एवं राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना ने गत चार वर्षो में जूलीफ्लोरा पर अनुसंधान कर इसके महत्व को बढ़ा दिया है।
जूलीफ्लोरा से पेय पदार्थ जूली कॉफी बनाने की कही जा सकती है। काजरी से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक सूखी हुई फलियों को थ्रेसर में डालकर पहले चूरा किया जाता है तथा इसके बाद फलियों में से प्राप्त बीजों के ऊपर का छिलका अलग कर बीजों का पाउडर बनाया जाता है। इस पाउडर को महीन छलनी से छान कर सिकाई की जाती है। सिकाई तब तक की जाती है, जब तक उसका रंग व सुगंध कॉफी के समान नहीं हो जाती है। ऐसा होने के बाद एक बार फिर इस पाउडर को पीसा जाता है। कड़वाहट को कम करने के लिये इसमें 30 फीसदी चिकौरी पाउडर मिलाया जाता है, इस तरह जूलीकॉफी तैयार हो जाती है। जूलीकॉफी इंसानों के लिए कितनी लाभदायक होगी। इसकी अंतिम परीक्षण रिपोर्ट न्यूटरीशन विभाग हैदराबाद को देनी है।