सामान्य ज्ञान
महिष्मति की पहचान मध्यप्रदेश के खारगो जि़ले के महेश्वर नामक कस्बे से की गई है। चेदि जनपद की राजधानी (पाली माहिस्सती) जो नर्मदा के तट पर स्थित थी। इसका अभिज्ञान जि़ला इंदौर में स्थित महेश्वर नामक स्थान से किया गया है जो पश्चिम रेलवे के अजमेर-खंडवा मार्ग पर बड़वाहा स्टेशन से 35 मील दूर है। कहा जाता है कि महाभारत के समय यहां राजा नील का राज्य था जिसे सहदेव ने युद्ध में परास्त किया था। राजा नील महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ता हुआ मारा गया था। बौद्ध साहित्य में माहिष्मती को दक्षिण-अवंति जनपद का मुख्य नगर बताया गया है। बुद्धकाल में यह नगरी समृद्धिशाली थी तथा व्यापारिक केंद्र के रूप में विख्यात थी। उसके बाद उज्जयिनी की प्रतिष्ठा बढऩे के साथ साथ इस नगरी का गौरव कम होता गया। फिर भी गुप्त काल में 5वीं शती तक माहिष्मती का बराबर उल्लेख मिलता है। कालिदास ने रघुवंश में इंदुमती के स्वयंवर के प्रसंग में नर्मदा तट पर स्थित माहिष्मती का वर्णन किया है और यहां के राजा का नाम प्रतीप बताया है।
माहिष्मती नरेश को कालिदास ने अनूपराज भी कहा है । जिससे ज्ञात होता है कि कालिदास के समय में माहिष्मती का प्रदेश नर्मदा के तट के निकट होने के कारण अनूप (जल के निकट स्थित) कहलाता था। पौराणिक कथाओं में माहिष्मती को हैहयवंशीय कार्तवीर्य अर्जुन अथवा सहस्त्रबाहु की राजधानी बताया गया है। किंवदंती है कि इसने अपनी सहस्त्र भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया था।
महेश्वर में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने नर्मदा के उत्तरी तट पर अनेक घाट बनवाए थे जो आज भी वर्तमान हैं। महेश्वरी नामक नदी जो माहिष्मती अथवा महिष्मान के नाम पर प्रसिद्ध है, महेश्वर से कुछ ही दूर पर नर्मदा में मिलती है। हरिवंश पुराण की टीका में नीलकंठ ने माहिष्मती की स्थिति विंध्य और ऋक्षपर्वतों के बीच में विंध्य के उत्तर में, और ऋक्ष के दक्षिण में बताई है।