सामान्य ज्ञान

1962 के आम चुनाव
11-Apr-2022 11:28 AM
1962 के आम चुनाव

तृतीय आम चुनाव में निर्वाचन आयोग ने पांच राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दलों के रुप में मान्य किया और इस समय की परिस्थितियां एक बड़े बदलाव का संकेत के साथ यह भी बतलाती है कि देश की परिस्थितियां कांग्रेस के अनुकूल न थी। 1959 में एक नए राजनीतिक दल स्वतंत्र पार्टी का निर्माण हुआ, इस नए राजनीतिक दल को राजाओं और जमीदारों का समर्थन प्राप्त हुआ। सैद्धांतिक दृष्टिकोण से स्वतंत्र पार्टी अन्य राजनीतिक दलों से भिन्न थी।

1962 में हुआ तीसरा आम चुनाव कई मायनों में खास था। पहली बार इस चुनाव में लोगों ने शख्सियत के बदले मुद्दों को तरजीह दी। लेकिन ये चुनाव पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए आखिरी चुनाव साबित हुआ। गौरतलब है कि आजादी के बाद का पहला और दूसरा चुनाव नेहरू ने अपनी शख्सियत के दम पर लड़ा। 1962 के चुनाव की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि अब तक स्वतंत्रता आंदोलन की खुमारी उतर चुकी थी। नेहरू खुद इस बात को समझ चुके थे और उन्होंने भी अपनी उपलब्धियों के दम पर इस इलेक्शन में उतरने का फैसला किया। नेहरू ने लोगों के बीच कृषि और उद्योग विकास की तस्वीर रखी। साथ ही ये भी बताया कि दो पंचवर्षीय योजनाओं के बाद देश ने कितनी तरक्की की है।

पहली बार इस चुनाव में सभी उम्मीदवारों के लिए एक बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल किया गया। इससे पहले के दोनों चुनाव में सभी उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल किया जाता था। अब एक ही पेपर में वोटरों को अपने पसंदीदा उम्मीदवार को चुनना था। नेहरू की जिंदगी के इस आखिरी चुनाव में उनके सामने कांग्रेस के भीतर ही नई परेशानी सामने आने वाली थी और ये परेशानी बने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष जे. बी. कृपलानी और राजगोपालाचारी। इस चुनाव में सबकी नजरें टिकी थीं नॉर्थ बॉम्बे सीट की तरफ।

दरअसल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जे. बी. कृपलानी अपने ही रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन के खिलाफ खड़े हो गए थे। इसके पीछे वजह थी अक्साई चीन पर चीन का कब्जा। दरअसल अक्साई चीन के मुद्दे पर रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन के खिलाफ खुद कृपलानी ने ही मोर्चा खोला और 11 अप्रैल 1961 को संसद के भीतर भाषण दिया जिसे आजादी के बाद संसद के भीतर सबसे बेहतरीन भाषण माना गया। हालांकि नेहरू के करिश्मे की वजह से कृपलानी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

इस चुनाव की एक और खासियत थी कांग्रेस के भीतर ही विरोधी ग्रुप तैयार करने की कोशिश। राजगोपालाचारी ने साफ कहा कि इकलौती पार्टी भी कई बार निरंकुश हो जाती है, लेकिन राजा जी के इस कॉन्सेप्ट का विरोध किया गया, इसलिए राजगोपालाचारी ने स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की और कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में उतरे। स्वतंत्र पार्टी को चुनाव में 18 सीटें जीतने में कामयाबी मिलीं। लोकसभा चुनाव में इस बार सीटों की संख्या 419 से बढक़र 494 हो गई, लेकिन कांग्रेस की सीटें 371 से घटकर 361 ही रह गईं। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने 29 और  स्वतंत्र पार्टी ने 18 सीटें हासिल कीं। इस प्रकार कम्युनिस्ट पार्टी प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी।

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