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रूस की धमकी के बाद क्या स्वीडन और फ़िनलैंड नेटो में शामिल होंगे?
16-Apr-2022 9:34 AM
रूस की धमकी के बाद क्या स्वीडन और फ़िनलैंड नेटो में शामिल होंगे?

रूस ने गुरुवार को नेटो को चेतावनी दी है कि अगर स्वीडन और फ़िनलैंड नेटो में शामिल हुए तो रूस यूरोप के बाहरी इलाक़े में परमाणु हथियार और हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात कर देगा.

फिनलैंड रूस के साथ 1340 किलोमीटर लम्बी सीमा साझा करता है. फ़िनलैंड और स्वीडन नेटो गठबंधन में शामिल होने को लेकर विचार कर रहे हैं.

फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन ने बुधवार को कहा था कि अगले कुछ हफ़्तों में वे नेटो में शामिल होने के मुद्दे पर फ़ैसला कर सकती हैं.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, रूस की सुरक्षा परिषद के डिप्टी चेयरमैन दिमित्री मेदवेदेव ने कहा कि अगर स्वीडन और फ़िनलैंड नेटो में शामिल होते हैं तो रूस को बाल्टिक सागर में अपनी थल-सेना, नौ-सेना और वायु सेना को और मज़बूत करना होगा.

मेदवेदेव ने इस दौरान परमाणु हमले की चेतावनी भी दे दी. उन्होंने कहा कि 'परमाणु मुक्त' बाल्टिक सागर को लेकर कोई बातचीत नहीं होगी. यहां रूस का कैलिनिनग्राद क्षेत्र है जो पोलैंड और लिथुआनिया के बीच में है.

इस इलाक़े को यूरोप का दिल भी कहा जाता है. ऐसे में यहां परमाणु हथियार और हाइपसोनिक मिसाइल रखना यूरोप के लिए रणनीतिक समस्या खड़ी कर सकता है.

उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि फ़िनलैंड और स्वीडन इस बात की गंभीरता को समझेंगे.

उन्होंने कहा, "अगर वे नहीं समझते हैं तो उन्हें परमाणु हथियारों और हाइपरसोनिक मिसाइल के क़रीब रहने की आदत डालनी होगी."

फ़िनलैंड और स्वीडन के नेटो में शामिल होने को लेकर रूस पहले भी यूक्रेन-हमले की ही तर्ज पर हमले के लिए तैयार रहने की चेतावनी दे चुका है. ऐसे में सवाल उठता है कि ये दोनों देश रूस के लिए क्यों अहम हैं.

फ़िनलैंड 1917 में रूस से अलग हुआ था और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दो बार रूस के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ चुका है.

गुरुवार को फ़िनलैंड ने पश्चिमी इलाक़े में ब्रिटेन, अमेरिका, लातविया और एस्टोनिया के साथ एक सैन्य अभियान की घोषणा की थी.

वहीं, स्वीडन ने पिछले 200 सालों में कोई युद्ध नहीं लड़ा है. उसकी विदेश नीति लोकतंत्र समर्थन और परमाणु निरस्त्रीकरण पर केंद्रित है.

इस साल जनवरी महीन में जब रूसी सेना यूक्रेन से लगी सीमा के पास जमा हो रही थी तो फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनके देश के नेटो से जुड़ने की संभावना बहुत कम है.

उन्होंने कहा था कि इस क़दम का बड़ा प्रभाव होगा और प्रतिबंध बहुत कड़े होंगे.

लेकिन, रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से फ़िनलैंड के पहले के और अभी के विचार में बड़ा बदलाव दिख रहा है. फ़िनलैंड इस मामले में आने वाले हफ़्तों में फ़ैसला ले सकता है.

वहीं, स्वीडन के लिहाज़ से भी बदलाव हुआ है. नेटो में शामिल होने का विरोध करने वाली सत्ताधारी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ने कहा कि वे रूस के हमले को देखते हुए अपनी स्थिति पर दोबारा विचार कर रही है.

फ़िनलैंड और स्वीडन की ओर से क्या कहा गया
फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन का कहना है कि उनका देश नेटो में शामिल होने के लिए आवेदन करेगा या नहीं इसको लेकर 'आने वाले हफ़्तों' में फ़ैसला लेगा.

उन्होंने कहा कि वो इस फ़ैसले में देरी का कोई कारण नहीं देखती हैं. यह बात उन्होंने स्वीडन की प्रधानमंत्री के साथ एक साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान कही.

उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब हाल ही में ऐसी रिपोर्ट सामने आई थीं जिनमें कहा गया था कि फ़िनलैंड की संसद ने कहा था कि इस वैश्विक गुट की सदस्यता के कारण 'फ़िनलैंड और रूस की सीमा पर तनाव बढ़' सकता है.

फ़िनलैंड और स्वीडन सैन्य रूप से गुट-निरपेक्ष हैं लेकिन रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद जनता के बीच इस बात को लेकर समर्थन देखने को मिला है कि उनका देश नेटो का सदस्य बने.

स्वीडन की नेता मैग्डेलेना एंडरसन ने पत्रकारों से कहा कि इसको लेकर 'गंभीर विश्लेषण' हो रहा है और उन्हें इसमें देरी करने की कोई वजह नहीं दिखती है.

स्वीडन के अख़बार स्वेंस्का डागब्लाडट ने बुधवार को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें कहा गया था कि एंडरसन जून के आख़िर में नेटो सम्मेलन की सदस्यता के लिए आवेदन करने पर विचार कर रही हैं.

मारिन ने कहा है, "मैं किसी भी तरह की कोई समयसूची नहीं दूंगी कि हम कब अपना फ़ैसला लेंगे. लेकिन ये जब भी होगा, बहुत औचक होगा."

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि नेटो की सदस्यता फ़िनलैंड को आर्टिकल फ़ाइव की सुरक्षा की गारंटी देगा जिसके तहत किसी भी सदस्य पर हमले को सभी सदस्यों पर किया गया हमला माना जाता है.

स्वीडन की प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एंडरसन के नेतृत्व वाली पार्टी ने सोमवार को एक बयान जारी करके कहा कि जब से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है तब से स्वीडन की अपनी सुरक्षा को लेकर जो पहले की सोच थी, उसमें बदलाव आया है.

रूस की धमकी
वहीं दूसरी ओर मॉस्को ने कहा है कि वह नेटो के किसी भी तरह के विस्तार का विरोध करता है.

रूस के राष्ट्रपति पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने चेतावनी देते हुए कहा कि ब्लॉक "उस तरह का गठबंधन नहीं है जो शांति और स्थिरता को लेकर आश्वासन दे सके."

अपने बयान में उन्होंने यह भी कहा कि नेटो के विस्तार से यूरोपीय महाद्वीप में कोई अतिरिक्त सुरक्षा नहीं मिल जाएगी.

इससे पहले, बीते सप्ताह पेस्कोव ने 'धमकी' भरे अंदाज़ में कहा था कि अगर फ़िनलैंड और स्वीडन नेटो में शामिल होने का फ़ैसला करते हैं तो रूस को अपने तरीक़े से 'स्थिति को दोबारा से संतुलित' करना होगा.

इससे पहले फ़रवरी महीने में, रूस के विदेश मंत्रालय की एक प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर फ़िनलैंड और स्वीडन नेटो में शामिल होते हैं तो इसके गंभीर राजनीतिक और सैन्य परिणाम भुगतने होंगे.

आने वाले सप्ताह में क्या कुछ हो सकता है
रूस लगातार धमकी और चेतावनी दे रहा है लेकिन इसके बावजूद स्वीडन के रक्षा शोध संस्थान में राजनीतिक-सैन्य मामलों के जानकार रॉबर्ट डॉल्सियो का कहना है कि फ़िनलैंड, नेटो में शामिल होने को लेकर तय कर चुका है और इसके लिए उसने संगठित तौर पर तेज़ी से प्रक्रिया शुरू भी कर दी है.

डॉल्सियो ने बीबीसी मुंडो को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि अब यह बहुत लंबा नहीं खिंचेगा. इसमें अब सिर्फ़ कुछ सप्ताह का समय ही लगेगा.

वहीं स्वीडन की आगामी योजना पर उन्होंने कहा कि स्वीडन इस मामले में फ़िनलैंड को ध्यान में रखते हुए उसका अनुसरण करने की कोशिश कर रहा है.

स्वीडिश डेली स्वेंस्का डागब्लेडेट ने बुधवार को अपनी एक रिपोर्ट में लिखा कि स्वीडन की प्रधानमंत्री नेटो ज्वाइन करने को लेकर ठान चुकी थीं और उनकी सरकार ने मैड्रिड सम्मेलन के दौरान सैन्य गठबंधन नेटो को आवेदन पेश करने की योजना भी बनायी थी.

स्वेंस्का डागब्लेडेट में यह रिपोर्ट उसी दिन प्रकाशित भी हुई थी जब फ़िनलैंड और स्वीडन की नेता ने क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों को लेकर स्टॉकहोम में मुलाक़ात की थी.

इस बैठक के बाद, मारिन ने एक बयान जारी करते हुए पुष्टि की थी उनके देश ने आने वाले दिनों में नेटो मे शामिल होने के लिए आवेदन करने का फ़ैसला लिया है.

अभी कुछ सप्ताह पहले मारिन ने अपने फ़ैसले में आए बदलाव के पीछे वजह देते हुए और उसे सही ठहराते हुए कहा कि 'दरअसल, रूस वैसा पड़ोसी नहीं है, जैसे उन्होंने रूस के संदर्भ में सोचा था.'

निश्चित तौर पर इस फ़ैसले की पृष्ठभूमि में यूक्रेन पर रूस का आक्रमण है.

अगर हाल में फ़ैसलों और सोच में आए बदलाव से इतर बात करें तो फ़िनलैंड और स्वीडन में, नेटो में शामिल होने को लेकर हमेशा ही विरोध का भाव रहा है.

स्वीडन अपनी लोकप्रिय न्यूट्रैलिटी को बनाए रखना चाहता था जबकि दि्वतीय विश्व युद्ध के बीद से फ़िनलैंड को सोवियस संघ को ये यक़ीन दिलाना पड़ा कि वह कोई ख़तरा नहीं होगा.

इससे पहले, रूस ने फ़िनलैंड पर कई बार हमला किया था और यहां तक कि 19वीं सदी के शुरुआत से 1917 तक इसे एक ऑटोनॉमस डची के रूप में शामिल भी कर लिया था. फ़िनलैंड पर रूस का आख़िरी हमला नवंबर 1939 में हुआ था.

लेकिन आक्रमण के ख़िलाफ़ सैन्य प्रतिरोध और तथाकथित "फ़िनिशाइज़ेशन" के कारण देश, सोवियत वर्चस्व के विरुद्ध स्वतंत्र रूप से रह सका.

फ़िनलैंड, सैन्य और विदेश नीति के संदर्भ में अभी तक तटस्थ ही रहा है और नेटो में शामिल नहीं हुआ. लेकिन वह वॉरसॉ संधि में शामिल भी नहीं हुआ. जबकि रूस चाहता था कि वह इसमें शामिल हो.

लेकिन अब यूक्रेन पर रूस के हमले ने इन देशों की सोच को और फ़ैसले को बड़े स्तर पर प्रभावित किया है.

यूक्रेन के नज़रिए से
हाल के दिनों में, फ़िनलैंड और स्वीडन दोनों ही देशों में नेटो की सदस्या लेने के लिए जनता का समर्थन बढ़ा है.

जबकि इसके पहले तक बड़ी संख्या में लोग या तो असमंजस की स्थिति में थे या फिर सीधे तौर पर इसके विरोध में. लेकिन अब 60 फ़ीसद फिनलैंडवासी और क़रीब-क़रीब 50 फ़ीसद स्वीडिश अब इसके समर्थन में हैं.

ये आंकड़े देश में अलग-अलग समय पर करवाए गए सर्वे और पोल के आधार पर बताए गए हैं.

रॉबर्ट के मुताबिक़, "यह बदलाव यूक्रेन पर हमला और पुतिन की आक्रामकता का परिणाम है, जिससे रूस के पड़ोसी मुल्कों को यह संदेश मिला है कि रूस आक्रामकता में क्या कुछ कर सकता है."

रॉबर्ट आगे कहते हैं कि फ़िनलैंड और स्वीडन में कई लोग खुद को बतौर एक यूक्रेन वासी देखकर सोच रहे हैं. उनके ज़हन में यह बात और डर है कि अगर रूस ने यूक्रेन की तरह ही उनके देश पर हमला कर दिया तो क्या होगा... शायद उन्हें भी यूक्रेन के लोगों की तरह भागना पड़े या फिर तबाही का गवाह बनना पड़े.

स्वीडन के जानकार बताते हैं कि यूक्रेन को पश्चिमी देशों, अमेरिका से आर्थिक, सैन्य और नैतिक तौर पर पूरा समर्थन मिल रहा है लेकिन नेटो में शामिल कोई भी देश, ऐसे देश की मदद के लिए सीधे तौर पर युद्ध में शामिल नहीं हो रहा है जो नेटो का सदस्य नहीं है.

यह बेहतरीन होगा
यूरोपीय सुरक्षा विशेषज्ञ और शिकागो में ग्लोबल अफ़ेयर्स काउंसिल के चेयरमैन इवो डालडेर का मानना है कि नेटो में शामिल सभी देश फ़िनलैंड और स्वीडन की सदस्या के आवेदन का स्वागत करेंगे.

अमेरिकी विशेषज्ञ मे बीबीसी मुंडो से कहा कि अगर वे शामिल होते हैं तो यह बेहतरीन होगा. वे नेटो के सबसे क़रीबी सहयोगी और वे लंबे सालों से क़रीबी सहयोगी है.

उन्होंने आगे कहा कि वे नेटो की महत्वपूर्ण बैठकों में, नेटो सदस्यों के साथ ब्रसेल्स में शामिल रहे हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि ये दोनों देश जल्दी ही नेटो में शामिल होने के लिए आवेदन करेंगे और और उन्हें अमेरिका का पूरा समर्थन मिलेगा.

फ़िलहाल 30 देश नेटो के सदस्य हैं. उनकी नीति 'हर किसी के लिए दरवाज़े खुले रखने' की है.

ये सभी देश इस नीति से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. अगर स्वीडन और फ़िनलैंड नेटो के सदस्य बन जाते हैं तो नेटो के सदस्य देशों की संख्या 32 हो जाएगी.

नेटो का गठन
सोवियत विस्तार के ख़तरे को देखते हुए साल 1949 में नेटो का गठन किया गया था.

लेकिन बर्लिन की दीवार गिरने के बाद से कई पूर्व कम्युनिस्ट पूर्वी यूरोपीय देश इसमें शामिल हो गए हैं.

इस गठबंधन के सदस्य किसी भी दूसरे सदस्य देश के ख़िलाफ़ सशस्त्र हमले की स्थिति में एक-दूसरे की सहायता के लिए प्रतिबद्ध हैं.

यूक्रेन पर रूस के हमले के कारण जहां फ़िनलैंड और स्वीडन में नेटो की सदस्यता को लेकर समर्थन बढ़ा है.

सोमवार को, फ़िनिश अधिकारियों ने सेना के लिए ड्रोन ख़रीदने के लिए 15 मिलियन डॉलर ख़र्च करने की योजना की घोषणा भी की है.

वहीं पिछले महीने, स्वीडन के अधिकारियों ने कहा था कि वे 2022 में अपने रक्षा ख़र्च में 317 मिलियन डॉलर का इज़ाफ़ा करेंगे.

इस बीच कुछ रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि मॉस्को ने फ़िनलैंड के साथ लगने वाली अपनी सीमा की ओर सैन्य गतिविधि शुरू कर दी है.

हालांकि अमेरिकी अधिकारियों ने इन रिपोर्ट्स के साक्ष्य के तौर पर कुछ प्रमाण होने की पुष्टि नहीं की है.

रूस की स्थिति
रूस के राष्ट्रपति पुतिन का मानना है कि पश्चिमी देशों ने 1990 में ये वादा किया था कि पूर्व की ओर नेटो एक इंच भी विस्तार नहीं करेगा, लेकिन इस वादे को तोड़ा गया.

वैसे, पुतिन जिस वक़्त की बात कर रहे हैं, उस समय सोवियत संघ अस्तित्व में था. तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति मिख़ाइल गोर्बाचेव के सामने पूर्वी जर्मनी के बारे में यह बात की गई थी. गोर्बाचेव ने बाद कहा भी था कि इस बैठक में नेटो के विस्तार को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई थी.

कई जानकारों ने इस बात को लेकर चिंता ज़ाहिर की है जैसा कि स्वीडन और फ़िनलैंड नेटो का सदस्य बनने को लेकर सक्रियता दिखा रहे हैं, तो उन्हें लेकर भी रूस वही रुख़ अपना सकता है जो उसने यूक्रेन के ख़िलाफ़ अख़्तियार किया.

रॉबर्ट कहते हैं कि क्रेमलिन जिस तरह की धमकियां दे रहा है वह कुछ और नहीं बल्कि उसकी निराशा और असंतोष को दिखाता है.

वह कहते हैं, "रूस की सेना यूक्रेन में युद्ध में शामिल है और ऐसे में उसके हाथ बुरी तरह से फंसे हुए हैं और ऐसे में वह इस स्थिति में नहीं है कि स्वीडन या फ़िनलैंड पर हमला कर सके."

नेटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने पिछले सप्ताह कहा था कि नेटो "अंतरिम अवधि" के भीतर-भीतर फ़िनलैंड और स्वीडन के लिए समाधान ढूंढ लेगा. (bbc.com)

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