सामान्य ज्ञान
नीदरलैंड्स के शहर एम्सटर्डम जाने वाले एक जगह जाना नहीं भूलते और वह है ऐन फ्रांक हाउस। तीन मई 1960 को इसे आम लोगों के लिए खोला गया।
नात्सी दौर में अपने परिवार के साथ जान बचाती फिरती एक लडक़ी की डायरी ने क्रूरता से जूझते उसके मासूम बचपन को दुनिया के सामने खोल कर रख दिया। ऐन फ्रांक की डायरी उस दौर के प्रामाणिक दस्तावेजों में से एक मानी जाती है। फ्रांक जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में 12 जून 1929 को पैदा हुई थी। 1945 में उत्तरी जर्मनी के बैर्गेन बेल्जेन कंसनट्रेशन कैंप में उसने अथाह यातना और उदासी झेलते हुए पंद्रह साल की उम्र में दम तोड़ा। उसके घर को बाद में ऐन फ्रांक म्यूजियम में बदल दिया गया। तीन मई 1960 को इसे आम लोगों के लिए खोला गया। एम्सटरडैम जाने वाले अक्सर फ्रांक म्यूजियम में जाकर उन दिनों के दर्द को महसूस करते हैं।
फ्रांक की मशहूर डायरी उसके 13वें जन्मदिन पर 12 जून 1942 को उनके पिता को मिली थी। युद्ध खत्म होने पर परिवार के इकलौते जीवित सदस्य उसके पिता ऑटो फ्रांक एम्सटरडैम लौटे जहां उन्हें ऐन फ्रांक की डायरी मिल। 1947 में उनकी कोशिशों से उसकी पहली प्रति डच भाषा में छपी। इस डायरी में 1942 से 1944 तक के फ्रांक के जीवन की कहानी है।
1942 में एम्सटरडैम में भी नाजियों का प्रभाव बढऩे पर जान बचाने के लिए उनका परिवार तहखाने में छिप कर रहने लगा, जहां कुछ दोस्तों के जरिए उन्हें खाने पीने और जरूरी चीजों की मदद मिलती थी। फ्रांक ने उन्हीं दिनों यह डायरी लिखी, लेकिन यह राज बहुत देर छुप नहीं सका और वे ढूंढ लिए गए। यहां से उन्हें आउश्वित्स यातना शिविर भेज दिया गया। 1945 में ऐन और उनकी बहन मार्गोट की यातना शिविर में ही मौत हो गई।