सामान्य ज्ञान
दुनिया भर में दस्त और पेचिश से शिशुओं और छोटे बच्चों की होने वाली मौत का मुख्य कारण रोटावायरस है। पांच साल से छोटी उम्र के बच्चे और खास तौर पर छह महीने से दो साल तक की उम्र के बच्चे, इस बीमारी का ज्यादातर शिकार होते हैं। अनुमान के अनुसार रोटावायरस से हर साल लगभग 5 लाख से अधिक मौतें होती हैं। इनमें से 85 प्रतिशत से अधिक मौतें एशिया और अफ्रीका के कम आमदनी वाले देशों में होती हैं। 20 लाख से ज्यादा बच्चे हर साल शरीर में पानी की कमी के कारण अस्पताल में भर्ती किए जाते हैं।
वर्ष 2009 में रोटावायरस से संबंधित विश्वव्यापी निगरानी नेटवर्क में शामिल 43 देशों में अस्पताल में भर्ती पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में से 36 प्रतिशत बच्चे रोटावायरस से संक्रमित थे। रोटावायरस सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों की आबादी को प्रभावित करता है तथा औद्योगिक और विकासशील देशों में एक समान रूप में पाया जाता है। स्वच्छता या जल आपूर्ति में अंतर से रोटावायरस संक्रमण पर प्रभाव नहीं पड़ता। इलेक्ट्रोनिक माइक्रोस्कोप से देखने पर यह वायरस गोलाकार चक्र जैसा दिखता है, जिसके कारण इसका नाम रोटावायरस रखा गया है। रोटावायरस से होने वाले दस्तों का कारण पेट और आंतों का संक्रमण है। जब बच्चे अपनी सफाई पर ध्यान नहीं देते, तो वे इससे संक्रमित हो जाते हैं। यह वायरस आपसी सम्पर्क या हवा के द्वारा फैलता है। इससे बच्चों को आम तौर पर हल्के दस्त लगते हैं और वे बिना किसी इलाज के तीन से पांच दिन में ठीक हो जाते हैं। लेकिन छोटे बच्चे, खासतौर पर जो दो वर्ष से छोटे हैं, उनके शरीर में पानी की कमी का खतरा पैदा हो जाता है।
रोटावायरस का पहला संक्रमण बहुत गंभीर होता है, क्योंकि बाद के वायरस संक्रमण के लिए शरीर में प्रतिरोधी शक्ति का निर्माण हो जाता है, यही कारण है कि इस तरह के संक्रमण प्रौढ़ व्यक्तियों में बहुत कम पाए जाते हैं। अनुमान है कि पांच साल की उम्र तक हर बच्चे को कम से कम एक बार रोटावायरस का संक्रमण होता है। ज्यादातर यह संक्रमण तीन महीने से लेकर तीन वर्ष की उम्र तक होता है।
इस समय अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में दो रोटावायरस टीके उपलब्ध हैं- रोटारिक्स और रोटाटेक। कम आयु वाले वर्गों में रोटावायरस की बीमारी के मामलों में ये टीके कम असरदार हैं। इसका कारण आंतों के अन्य संक्रमण, कुपोषण, तपेदिक आदि की ज्यादातर होने वाली बीमारियां भी हो सकती हंै। इसके अलावा सामान्य तौर पर टीकाकरण के अभियान में कम प्रतिशत आबादी कवर होने के कारण भी रोटावायरस टीके की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
भारत में रोटावायरस की गंभीर बीमारी के मामलों से संबंधित राष्ट्रीय स्तर के प्रमाणित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन अध्ययनों से पता चला है कि दस्त और पेचिश के कारण अस्पताल में भर्ती होने वालों में से औसतन 34 प्रतिशत मामले रोटावायरस संक्रमण के कारण हैं। पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी इन मामलों में कमी नहीं आई है, जिससे पता चलता है कि स्वच्छता में सुधार और एंटीबायोटिक दवाएं रोटावायरस के मामले में प्रभावी नहीं है।