सामान्य ज्ञान
गेर एक प्रकार का भारतीय लोक नाट्य है। राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में होली के अवसर पर लगभग पूरे मास गेर नृत्य का चलन बड़े उल्लासमय और स्फूर्तिदायक रुप में होता है।
सामूहिक रुप में विशेषकर पुरुष लड़कियों के डंके के साथ नाचते हैं जिसमें प्रत्येक अंग का भाग तोड़ और मरोड़ के साथ ताल से नाचता है और बीच में ढोल का ठमका बजाता रहता है। लगभग आधी रात तक यह क्रम चलता है, कभी-कभी स्री पुरुष के जोड़े एक कतार में दो दलों के रुप में पास आते हैं और पीछे हटते हैं। इस नृत्य में भीली संस्कृति की प्रधानता रही है। इसके साथ जो संगीत की लडिय़ां गाई जाती हैं, वे किसी वीरोचित गाथा का प्रेमात्यान के खण्ड होते हैं। फसल भी खुशहाली की द्योतक लयों को भी गा - गाकर नृत्य के साथ जोड़ा जाता है। वर्तमान में इस नृत्य की लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी कि भीलों के अतिरिक्त अन्य जातियां भी इस अवसर पर गेर बनाकर नाचते रहते हैं और इसके साथ गाते भी हैं। कृषक समाज में भी इसका प्रचलन है जो फसल काटने के पश्चात् और फसल बोकर गेर करते हैं।