सामान्य ज्ञान

टांसिल
09-Jun-2022 10:34 AM
 टांसिल

हमारे गले में जीभ के पीछे दोनों ओर टांसिल के तीन जोड़े हैं, इन्हें पेलाटाइन फारन्गील तथा लिन्गुअल टांसिल कहा जाता है। टांसिल एन्टीबाडीज पैदा करते रहते हैं जो पाचन और श्वसन संस्थान में रोग फैलाने वाले कीटाणुओं का विनाश करते रहते हैं। इनमे पेलाटाइन टांसिलों का जोड़ा सबसे बड़ा है। जैसे-जैसे आदमी की उम्र बढ़ती है इनका आकार छोटा हो जाता है। फारन्गील टांसिले नासिका गुहिका जहां खुलती है वहां पर होते हैं तथा लिन्गुअल टांसिले जीभ के आधार के पास होती है।

टांसिल लिम्फेटिक नामक ऊतकों से बने छोटे-छोटे टुकड़ें हैं। ये निरंतर लिम्फोसाइट बनाते रहते हैं। लिम्फोसाइट एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं हैं, जो रोग फैलाने वाले कीटाणुओं से शरीर की सुरक्षा  के लिए संघर्ष करते रहते हैं। ये टांसिल एक विशेष प्रकार की झिल्ली से ढंके रहते हैं। यह झिल्ली टांसिलों पर चारों ओर छोटे-छोटे गड्ढïे बनाए रहती है। जैसे ही हमारी नामक या मुंह से हानिकारक रोगाणु प्रवेश करते हैं, वैसे ही वे इन गड्ढïों में फंस जाते हैं और श्वेत रक्त कोशिकाएं घेरा डालकर उनके विनाश का काम शुरु कर देती है। इस प्रकार टांसिल रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं से हमारे शरीर की रक्षा करते हं।

कभी-कभी टांसिल इन रोगाणुओं का विनाश नहीं कर पाते, तब ये टांसिलों को रोगग्रस्त करने में सफल हो जाते हैं। इस रोग को टांसलाइटस कहते हैं। ऐसी स्थिति में टांसिलों में सूजन आ जाती है, जिससे गले में खट्टापन महूसस होने लगता है। खाने की वस्तुओं को निगलने में परेशानी होती है। इस रोग में बुखार भी हो जाता है। कभी-कभी इनमें पस भी पड़ जाता है। वैसे तो यह रोग चार-पांच दिन में अपने आप ही ठीक हो जाता है, लेकिन यदि ठीक न हो तो डॉक्टर की सलाह लेना बहुत जरूरी होता है। यदि यह रोग दवाओं से ठीक नहीं होता तो टांसिलों का ऑपरेशन कराना पड़ता है। यह रोग जवानों की अपेक्षा छोटे बच्चों को अधिक होता है। इस रोग का आक्रमण जाड़ों के मौसम में गर्मियों की अपेक्षा अधिक होता है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news