सामान्य ज्ञान
तंजावुर जिसे पहले तंजौर भी कहा जाता था, को तमिलनाडु का ‘चावल का कटोरा’ कहा जाता है। यह शहर अपनी शिल्पकला और मंदिरों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। ईसाई युग की शुरूआत में तंजावुर की स्थापना समृद्ध और शक्तिशाली चोल शासकों ने की थी और यहां उसी शानदार विरासत की छाप नजऱ आती है।
तंजावुर में महान बृहाद्विश्वर मंदिर के अलावा और भी बहुत कुछ है। यहां पीतल के बर्तनों पर की गई कलाकारी, बहुत ही खूबसूरत सिल्क साडिय़ां और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तंजौर की चित्रकारी के अद्भुत रूप देखने को मिलते हैं। यहां शिल्पकार अपने पूरे परिवार के साथ रेशम की मखमली साडिय़ां बुनते हुए दिख जाएंगे।
तंजौर की पेंटिंग्स यहां बहुत लोकप्रिय है। तंजौर चित्रकला में ज्यादातर हिंदू देवी देवताओं के ही चित्र देखने को मिलते हैं, जो बहुत ही खूबसूरती के साथ लकड़ी या कपड़े पर बनाए जाते हैं। चित्रों पर किए गया सोने, चांदी के कवर, रंगबिरंगे रत्नों का जड़ाव का कुशल कार्य इनको 3-डी प्रभाव देकर और भी सुंदर बनाता है। आजकल कई लोग ग्लास पर भी इस तरह की चित्रकारी करते हैं जिनमें आधुनिकता की झलक होती है।
तंजावुर से 30 कि.मी. की दूरी पर है स्वामीमलाई और कुंभकोणम बस्तियों के छोटे से गांव, जहां चोल शासकों की कास्य मूर्तिकला का परंपरा को अब तक कायम रखा गया है। यहां पर बसे कारीगर कई पीढिय़ों से इस कौशल का अभ्यास कर रहे हैं। यहां ज्यादातर मूर्तियां नाचते हुए शिव और पार्वती की ही होती हैं। मूर्ति पर की गई नक्काशी और कला जीवंत प्रतीत होती हैं।