सामान्य ज्ञान

भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण का प्रावधान
20-Jun-2022 10:42 AM
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण का प्रावधान

हमारे संविधान की प्रस्तावना समाज के सामाजवादी तरीके और प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चि करती है। जीने के बेहतर मानक और प्रदूषणरहित वातावरण संविधान के भीतर अंतर्निहित है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के अनुसार पर्यावरण में जल, हवा और जमीन और अंतरसंबंध जिसमें हवा समाहित हो, जल-जमीन और मानव, अन्य जीवित चीजें, पेड़-पौधे, सूक्ष्म जीवजंतु और संपत्ति आदि समाहित हैं।

भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों के तहत हर नागरिक से अपेक्षा की जाती है कि वे पर्यावरण को सुरक्षित रखने में योगदान देंगे। अनुच्छेद 51  ए (जी) कहता है कि जंगल, तालाब, नदियां, वन्यजीव सहित सभी तरह की प्राकृतिक पर्यावरण संबंधित चीजों की रक्षा करना और उनको बढ़ावा देना हर भारतीय का कर्तव्य होगा। साथ ही प्रत्येक नागरिक को सभी सजीवों के प्रति करुणा रखनी होगी।

भारतीय संविधान के अंतर्गत मूल सिद्धांतों एक कल्याणकारी राज्य निर्माण के लिए काम करते हैं। स्वस्थ पर्यावरण भी कल्याणकारी राज्य का ही एक तत्व है। अनुच्छेद 47 कहता है कि लोगों के जीवन स्तर को सुधारना, उन्हें भरपूर पोषण मुहैया कराना और सार्वजनिक स्वास्थ्य की वृद्धि के लिए काम करना राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों में शामिल हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के तहत पर्यावरण संरक्षण और उसमें सुधार भी शामिल हैं क्योंकि इसके बगैर सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 48 कृषि एवं जीव संगठनों के संरक्षण की बात करता है। यह अनुच्छेद राज्यों को निर्देश देता है कि वे कृषि और जीवों से जुड़ों धंधों को आधुनिक तथा वैज्ञानिक तरीके से संगठित करने के लिए जरूरी कदम उठाएं। विशेष तौर पर, राज्यों को जीव-जन्तुओं की प्रजातियों को संरक्षित करना चाहिए और गाय, बछड़ों, भेड़-बकरी और अन्य जानवरों की हत्या पर रोक लगानी चाहिए। संविधान का अनुच्छेद 48-ए कहता है कि राज्य पर्यावरण संरक्षण और उसको बढ़ावा देने का काम करेंगे और देशभर में जंगलों व वन्य जीवों को को की सुरक्षा के लिए काम करेंगे।

प्रत्येक व्यक्ति के विकास के लिए सबसे जरूरी मौलिक अधिकारों की गारंटी भारत का संविधान भाग-3 के तहत देता है। पर्यावरण के अधिकार के बिना व्यक्ति का विकास भी संभव नहीं है। अनुच्छेद 21, 14 और 19 को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयोग में लाया जा चुका है।

संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार कानून द्वारा स्थापित बाध्यताओं को छोडक़र किसी भी व्यक्ति को जीवन जीने और व्यक्तिगत आजादी से वंचित नहीं रखा जाएगा। मेनका गांधी बनाम भारत सरकार (्रढ्ढक्र १९७८ स्ष्ट ५९७) संबंधी मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अनुच्छेद 21 की समय समय पर उदारवादी तरीके से व्याख्या की जा चुकी है। अनुच्छेद 21 जीवन जीने का मौलिक अधिकार भी देता है, इसमें पर्यावरण का अधिकार, बीमारियों व संक्रमण के खतरे से मुक्ति का अधिकार अंतर्निहित हैं। स्वस्थ वातावरण का अधिकार प्रतिष्ठा से मानव जीवन जीने के अधिकार की महत्वपूर्ण विशेषता है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वस्थ वातावरण में जीवन जीने के अधिकार को पहली बार उस समय मान्यता दी गई थी, जब रूरल लिटिगेसन एंड एंटाइटलमेंट केंद्र बनाम राज्य ्रढ्ढक्र १९८८ स्ष्ट २१८७  (देहरादून खदान केस के रूप में प्रसिद्ध) केस सामने आया था।  यह भारत में अपनी तरह का पहला मामला था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण व पर्यावरण संतुलन संबंधी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इस मामले में खनन (गैरकानूनी खनन ) को रोकने के निर्देश दिए थे।    

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