सामान्य ज्ञान
प्रोजेक्ट चीता, देश में लुप्त हो चुके चीते को बचाने की केंद्र सरकार की एक मुहीम है। इसके तहत भारत सरकार ने तीन अरब रुपये मंजूर किए हैं। मध्य प्रदेश में दो और राजस्थान में एक वन क्षेत्र को इस परियोजना के लिए चुना गया है।
मध्य प्रदेश के कूनों पालपुर वन्यजीव अभयारण्य और नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य के अलावा राजस्थान के जैसलमेर जिले में शाहगढ़ का चयन प्रोजेक्ट चीता के तहत किया गया है। इन अभयारण्यों में अफ्रीकी प्रजाति के चीते लाए जाएंगे। उत्तरी अफ्रीका के चीते पश्चिम एशिया के कई देशों में पल रहे हैं और वहीं से भारत लाए जाएंगे। ईरान से भी बात हो चुकी है। ये देश बिना किसी लागत के भारत को चीते देने को तैयार हैं। विशेषज्ञों ने भी ईरानी और अफ्रीकी नस्ल के चीतों को भारत की जलवायु के अनुकूल पाया है। दोनों देशों में पाए जाने वाले चीतों में आनुवंशिक समानता भी है।
चीता भारतीय जीवन से अभिन्न रूप से जुड़ा वन्यप्राणी है। यह संभवत: एकमात्र स्तनपाई जन्तु है जिसे आज भी विश्वभर में चीता कह कर ही बुलाया जाता है। चीता शब्द संस्कृत के चित्राकु शब्द का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है धब्बेदार। वनक्षेत्रों से जुड़े हुए चरागाहों में रहने वाला संसार का यह सबसे तेज प्राणी मानव जाति के लालच का शिकार हुआ है। अपनी खूबसूरत और आकर्षक खाल के लिए यह शुरू से ही शिकारियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार पिछली शताब्दी के पचासवें दशक तक चीता भारत के जंगलों में विचरता था। परन्तु राजे-रजवाड़ों के शिकार के शौक और तस्करों के लालच ने इसे शीघ्र ही देश से गायब कर दिया।