सामान्य ज्ञान
देवरत्तम विशुद्ध रूप से लोकनृत्य है, जिसे अब तक तमिलनाडु के मदुराई जिले के कोडानगपट्टी के वीरापंड्या काटाबोम्मन राजवंश के वंशजों द्वारा बचाए रखा गया है। वस्तुत: यह वर्ष में एक बार मंदिर के नजदीक किया जाता था और वह भी केवल उस समाज तक ही सीमित था।
लोक साहित्य के शोध विद्वानों ने यह पाया है कि देवरत्तम पुरातन तमिल राजाओं के प्राचीन मुन्थेर कुरूवाई और पिन्थेर कुरूवाई का मिश्रण है। यह युद्ध भूमि से राजा और उसकी सेना के विजयी होकर लौटने पर रथ के सामने और रथ पर किया जाता था। यहां तक कि कभी-कभी राजा और उसके सेना अधिकारी रथ के मंच पर नृत्य करते थे। सैनिक और नर्तकियां पंक्तियां बनाकर रथ के पीछे नृत्य करते थे।
अब, इस नृत्य में कोई गीत नहीं होते, परन्तु केवल उरूमी मेलम, थप्पू मेलम और कभी-कभी लम्बी बांसुरी के ताल पर नृत्य किया जाता है। इस नृत्य का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति नकली दाढ़ी व सीपियों (शेल्स) से सजा हुआ दांतों जैसा दिखने वाला मुखौटा लगाता है। वह पहले नृत्य करता है और दूसरे उसका अनुसरण करते हैं।