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कर्नाटक चुनाव : भारतीय राजनीति पर क्या होगा असर?
07-Apr-2023 3:59 PM
कर्नाटक चुनाव : भारतीय राजनीति  पर क्या होगा असर?

 इमरान कुरैशी

मई में होने जा रहे कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में मिलने वाली जीत या हार से राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तुलना में कांग्रेस के प्रभावित होने की उम्मीद ज़्यादा है।

हालांकि जानकारों की मानें तो इसका ये मतलब कतई नहीं है कि बीजेपी को इस चुनाव में चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ रहा है।

चुनाव विश्लेषक संजय कुमार और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव की मानें तो कर्नाटक में यदि कांग्रेस को जीत मिली तो, यह इस साल दूसरे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के लिए बूस्टर डोज़ साबित हो सकती है।

दक्षिणी भारत के राज्यों ने अक्सर उत्तरी भारत के राज्यों की तुलना में अलग तरीके से मतदान किया है। वैसे कर्नाटक के चुनाव महाराष्ट्र या तेलंगाना जैसे पड़ोसी राज्यों को प्रभावित नहीं करते। हालांकि जानकार इससे बिल्कुल राय रखते हैं।

बीजेपी से ज़्यादा कांग्रेस के लिए अहम

सेंटर फॉर डेवलपिंग सोसाइटीज़ (ष्टस्ष्ठस्) के पूर्व निदेशक डॉ। संजय कुमार कहते हैं, ‘मान लें कि इस चुनाव में बीजेपी हार जाती है, तो इससे कांग्रेस और विपक्ष को एक नया जीवन मिलेगा। इन दलों को इससे और ऊर्जा मिलेगी।’

उनके अनुसार, ‘यह हार हालांकि बीजेपी के लिए एक झटका होगी, लेकिन उस पर इसका ज्यादा असर नहीं होगा। दूसरी ओर, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से यह हार कांग्रेस के लिए एक तरह का गतिरोध साबित होगी।’

उनका मानना है, ‘कांग्रेस को जल्द से जल्द एक नैरेटिव तैयार करना होगा। यदि वो चुनाव दर चुनाव हारती जाती है, तो वो अपने पक्ष में पॉजिटिव नैरेटिव तैयार नहीं कर पाएगी। यही कारण है कि ये चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत अहम है।’

कर्नाटक में इस बार 10 मई को मतदान होना है और इसके नतीजे 13 मई को आएंगे। ये चुनाव तय करेगा कि क्या बीजेपी को 2019 की तरह इस बार भी ‘ऑपरेशन कमल’ चलाना पड़ेगा या नहीं।

बीजेपी ने चार साल इस ऑपरेशन के सहारे ही विधायकों का दल बदल करवाकर कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) की सरकार को सत्ता से बाहर किया था।

बीजेपी ने 2008 में 110 और 2018 में 104 सीटें जीती थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद जेडीएस-कांग्रेस का गठबंधन टूटा था।

वैसे डॉ. योगेंद्र यादव का मानना है कि कर्नाटक में चुनाव परिणाम के मायने बहुत बड़े होंगे।

वो कहते हैं, ‘कर्नाटक में बीजेपी को कभी भी अपने दम पर बहुमत नहीं मिला। यदि इस बार ऐसा हो गया, तो वो पूरे देश में ढिंढोरा पीटेगी कि उसके पास दक्षिण भारत में चुनावी स्वीकार्यता का सबूत है। वो ये साबित करने की कोशिश भी करेगी कि कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा का कोई असर नहीं हुआ।’

वो कहते हैं, ‘इससे समूचे विपक्ष का मनोबल गिरेगा, ठीक वैसे ही जैसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा नतीजों का उनके मनोबल पर पड़ा था।’

योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘सबसे अहम बात ये होगी कि इससे देश में सकारात्मक राजनीति का रास्ता साफ होगा। इससे साबित होगा कि मतदाताओं को हिजाब और अजान से विचलित नहीं किया जा सकता। उनके लिए आम जनजीवन से जुड़ा शासन ही मायने रखता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ये एक बहुत ही अहम चुनाव है।’

बीजेपी के लिए चुनौती

कांग्रेस की तुलना में बीजेपी के लिए इस चुनाव की अहमियत कम होने की बात समझाने के लिए डॉ. संजय कुमार एक उदाहरण का सहारा लेते हैं।

वो कहते हैं कि कैसे कोई टॉपर किसी विषय में अच्छा प्रदर्शन न करने के बावजूद अपनी टॉप पोजीशन नहीं खोता।

वहीं अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर ए नारायण भी डॉ संजय कुमार की राय से सहमत हैं। वो कहते हैं कि इस चुनाव में यदि कांग्रेस की हार होती है, तो ये उसके लिए बहुत बड़ा झटका साबित हो सकती है।

नारायण कहते हैं, ‘यदि इस चुनाव में बीजेपी हारती है, तो इसका मतलब ये होगा कि वो दक्षिण भारत में कोई प्रगति नहीं कर पाई है। लेकिन यदि बीजेपी जीतती है, तो इस जीत से दक्षिणी पड़ोसी राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कार्यकर्ताओं को पर्याप्त ऊर्जा मिलेगी।’

वो कहते हैं, ‘दक्षिणी भारत के दरवाजे बीजेपी के लिए अभी ठीक से नहीं खुले हैं। वो कर्नाटक के छोर से इस दरवाजे को सिर्फ धकेलने की कोशिश कर रहा है।’

कर्नाटक के मतदाता कुछ समय बाद हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अलग-अलग दलों को जीत दिला चुके हैं।

बीजेपी अब उतनी मजबूत नहीं

1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी को पूरे देश में जोरदार जीत मिली थी, लेकिन उसके कुछ ही महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्हीं वोटरों ने जनता पार्टी के रामकृष्ण हेगड़े का चुनाव किया।

ऐसे में इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कितना फायदा होने की उम्मीद है?

इस सवाल के जवाब में डॉ. संजय कुमार कहते हैं, ‘लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक के बाद एक जीतते रहने की बीजेपी की क्षमता दो-तीन साल पहले बहुत मजबूत थी। लेकिन उसकी यह क्षमता अब कम हो गई है।’

उनके अनुसार, ‘राज्य सरकार ने चाहे अच्छा प्रदर्शन किया हो या नहीं, लगातार विधानसभा चुनाव जीतने के मामले में बीजेपी अब उतनी मजबूत नहीं रही। वैसा दौर 2015 से 2019 के बीच का था। सरकार ने यदि अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, तो उसे चुनौती का सामना करना पड़ा है।’

कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं। 1999 से अब तक के हर चुनाव में बीजेपी वहां दोहरे अंकों में सीटें जीतती रही है। उस समय अपनी लोक शक्ति पार्टी को एनडीए में शामिल करके हेगड़े ने अपना लिंगायत वोट बैंक बीजेपी को ट्रांसफर करवा दिया था। 1999 में 13 सीटों से बढ़ते बढ़ते 2019 में बीजेपी 25 सीटों तक जा पहुंची।

बीजेपी और कांग्रेस दोनों के शासनकाल में कर्नाटक को केंद्रीय मंत्रिमंडल में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलता रहा है। विदेशी मामलों के अलावा उसे रेलवे, सामाजिक न्याय, श्रम, खाद्य प्रसंस्करण जैसे कई अहम मंत्रालय मिल चुके हैं।

लोकतंत्र के लिए कर्नाटक चुनाव का महत्व

योगेंद्र यादव कर्नाटक विधानसभा चुनावों के कहीं अधिक व्यापक प्रभाव देखते हैं।

वो कहते हैं, ‘मेरा एक गंभीर दावा है कि हम अपने गणतंत्र का विघटन होता देख रहे हैं। समान नागरिकता का संवैधानिक प्रावधान पहले ही नकारा जा चुका है। स्वतंत्रता के अधिकार से पहले से ही समझौता कर लिया गया है।’

‘संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। इसलिए, अभी लोकतंत्र के लिए ही नहीं बल्कि गणतंत्र के लिए भी चुनौती है। क्योंकि अभी भारत कही जानी मानी राजनीतिक इकाई को ही तोड़ा जा रहा है।’

उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि गणतंत्र को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है। और यह होना तभी शुरू हो सकता है, जब कर्नाटक में बीजेपी की निर्णायक हार हो जाए। ‘भारत जोड़ो’ यात्रा ने एक गति तो पैदा की है। इसने एक तरह से बीजेपी के एकछत्र राज पर सवाल उठाकर प्रभुत्व और विध्वंस की प्रक्रिया रोक दी। उस गति को आगे बढ़ाने का फैसला कर्नाटक के मतदाताओं द्वारा तय होगा।’ (bbc.com)

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