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चुनावों को कैसे प्रभावित कर सकता है आर्टिफि़शियल इंटेलिजेंस?
08-May-2023 3:59 PM
चुनावों को कैसे प्रभावित कर सकता है आर्टिफि़शियल इंटेलिजेंस?

31 मार्च 2023 एक महत्वपूर्ण दिन था जब अमेरिका की एक ग्रैंड ज्यूरी ने पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के खिलाफ आरोप तय कर दिए। इसी दौरान एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें राष्ट्रपति जो बाइडन और उप राष्ट्रपति कमला हैरिस व्हाइट हाउस में जश्न मनाते देखे गए।

वीडियो को गौर से देखने पर पता चलता है कि इसमें कमला हैरिस के हाथों में छह उंगलियां हैं और उनके हाथ का ऊपरी हिस्सा गायब है।

असल में उस दिन राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति दोनों ही व्हाइट हाउस में मौजूद नहीं थे। लेकिन उनकी ये फेक तस्वीरें लाखों लोगों को भेजी गईं।

ये वीडियो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी ‘एआई’ से बनाए गए वीडियो, फोटो और लेख जैसी प्रचार सामग्री है जो अगले राष्ट्रपति चुनाव में लाखों मतदाताओं तक पहुंचाई जाएगी, वो भी तेज गति से। यह सामग्री मतदाताओं के छोटे समूहों को उनकी प्रोफाइल के हिसाब से तैयार कर के भेजी जाएगी।

इसे बनाने वाला जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैट-जीपीटी पिछले साल नवंबर में लॉन्च किया गया था और अब आम लोगों के लिए उपलब्ध है।

चैट-जीपीटी इंटरनेट से तमाम जानकारी खंगाल कर लेख और ब्लॉग लिख सकता है, यहां तक कि गीत और कविताएं भी लिख सकता है।

ऐसे में मतदातओं के लिए यह पता लगाना मुश्किल होगा कि उनके पास जो प्रचार सामग्री आई है वो असली है या नकली।

इस हफ़्ते हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि क्या अमेरिका का अगला राष्ट्रपति आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से तय होगा?

डिजिटल राजनीति

चुनावी राजनीति में आर्टिफि़शियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल को समझने के लिए हमने बात की बेट्सी हूवर जो हायर ग्राउंड्स लैब की सह-संस्थापक हैं।

यह कंपनी चुनावी अभियान में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी में निवेश करती है। बेट्सी हूवर ने 2007 में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के चुनाव प्रचार में ऑर्गेनाइजर के रूप में राजनीति में कदम रखा था।

बेट्सी हूवर बताती हैं, ‘उस समय ओबामा पहले उम्मीदवार थे जिन्होंने चुनाव प्रचार में जनता से संपर्क करने और जन संगठन के लिए डिजिटल टेक्नॉलोजी का भरपूर इस्तेमाल किया। उस समय हमारे पास लोगों की और धन की कमी थी। इस अड़चन को दूर करने का उपाय था डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल। इसे हमने पहले राज्य स्तर पर और फिर राष्ट्रीय स्तर पर आजमाने की रणनीति बनाई।’

उनका कहना है कि इसकी वजह केवल पैसों की बचत ही नहीं बल्कि लोगों तक प्रभावी तरीके से पहुंचना भी था।

लोग घर पर हों, ऑफिस में या कहीं और, लेकिन उनके फोन हमेशा ऑन रहते हैं। इसलिए डिजिटल माध्यम लोगों से संपर्क करना अच्छा जरिया था। मगर क्या उन्हें यह डर नहीं था कि इसमें कहीं ना कहीं लोगों से सीधे संपर्क की कमी रह जाती है?

बेट्सी हूवर मानती हैं, ‘उस समय भी इस मुद्दे को काफी बहस हुई थी। हम लोगों तक मैसेज, ईमेल और फेसबुक के जरिये चुनावी संदेश पहुंचा रहे थे और हम खुद भी यह सोच रहे थे कि यह तरीका सीधे संपर्क से ज़्यादा प्रभावी है या नहीं। ये सच है कि इसके माध्यम से हम एक समय में कहीं ज्यादा लोगों से जुड़ पा रहे थे।’

2012 में ओबामा दोबारा राष्ट्रपति चुने गए। लेकिन पिछले दस सालों में चुनावी अभियान में टेक्नोलॉजी की भूमिका काफी बदल गई है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी के जरिये अब मतदाताओं की प्रोफाइल और प्राथमिकताओं का पता लगाया जा सकता है और उसी के अनुसार उम्मीदवार अपने संदेश और प्रचार सामग्री को बदल सकते हैं।

माना जा रहा है कि जनरेटिव एआई का एक प्रभावी हिस्सा 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में बड़ा असर डाल सकता है।

यह टेक्नोलॉजी मतदाताओं की प्रोफाइल और सोच के आधार पर चुनाव प्रचार के लिए बड़े पैमाने पर सामग्री बनाकर लोगों तक पहुंचा सकती है। इसके जरिये उम्मीदवार छोटे गुटों में लोगों तक अपना संदेश पहुंचा सकते हैं।

बेट्सी हूवर का कहना है,‘उम्मीदवार अपने चुनावी अभियान के लिए बड़ी संख्या में कंटेंट राइटर और रणनीतिकारों को रखते हैं जो चुनाव प्रचार के लिए लिखे गए ई-मेल या पोस्ट के वेरिएशन बनाकर उसे अलग-अलग मतदाताओं के भेजते हैं। मगर इतने सारे वेरिएशन बनाने में समय और पैसा लगता है। आर्टिफि़शियल इंटेलिजेंस से यह काम बहुत तेजी से और सस्ते में हो सकता है।’

लेकिन अगर टेक्नोलॉजी की मदद से आसानी से और सस्ते में कंटेंट बनाया जा सकता है तो इसमें एक जोख़िम भी है। वो ये कि गलत लोग इसका इस्तेमाल किसी उम्मीदवार को नुकसान पहंचाने के लिए या उसकी छवि बिगाडऩे के लिए भी कर सकते हैं।

आर्टिफि़शियल इंटेलिजेंस

आर्टिफि़शियल इंटेलिजेंस के संभावित दुरुपयोग के बारे में बीबीसी ने बात की हनी फऱीद से जो बर्कले, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में संचार विज्ञान के प्रोफेसर हैं और एआई के दुरुपयोग की एक चौंकाने वाली मिसाल देते हैं।

वो कहते हैं, ‘क्या आपने वो खबर देखी है जिसमें एक महिला को उनकी बेटी का फोन आया। उनकी बेटी कह रही थी कि कुछ लोगों ने उनका अपहरण कर लिया है। उस महिला ने फौरन अपने पति को फोन किया और बताया कि उनकी बेटी तो घर में खेल रही है। मामला ये था कि किसी ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से उनकी बेटी की आवाज की नकल कर उन्हें मैसेज भेजा था। यानी कोई उनसे पैसे वसूल करने की कोशिश कर रहा था।’

ये उदाहरण भले की अपवाद लगे लेकिन इससे यह पता चलता है कि एआई सॉफ्टवेयर अब इतने विकसित हो गए हैं और वो किसी की आवाज की इतनी अच्छी नकल कर सकते हैं कि उसे पहचानना मुश्किल हो जाए।

पिछले बीस सालों में कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर बनाने की हमारी क्षमता तेजी से बढ़ी है, जिस कारण एआई सॉफ्टवेयर अब काफी विकसित हो गए हैं। साथ ही लोग खुद अपनी ढेर सारी जानकारी इंटरनेट पर सौंपते रहे हैं, जिसके आधार पर उन्हें निशाना बनाना मुश्किल नहीं।

हनी फरीद कहते हैं, ‘पिछले बीस सालों में हम फोटो, वीडियो, आवाज जैसी जानकारी अपनी मर्जी से सोशल मीडिया पर डालते रहे हैं।’

‘जब भी आप किसी वेबसाइट पर जाते हैं आपकी काफी जानकारी उन्हें मिल जाती है। यह बेहद फायदेमंद व्यापार है। अब मशीन आपकी शक्ल और आवाज़ पहचानती है, आपके परिवार के लोगों की जानकारी भी उनके पास है। सोशल मीडिया और दूसरी वेबसाइट पर डेटा खंगालने वालों के पास अद्भुत मात्रा में लोगों की जानकारी मौजूद है जिसकी वजह से हमें निशाना बनाया जा सकता है और गुमराह भी जा सकता है।’

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सोशल मीडिया और दूसरी वेबसाइट मौजूद जानकारी और एआई की मदद से लोगों के प्रोफाइल बनाती हैं और उसके मुताबिक उन तक विज्ञापन पहुंचाती हैं। (बाकी पेज 8 पर)

मिसाल के तौर पर अगर आप किसी जगह जाने के लिए टिकट की जानकारी खोजें तो फौरन ही आपको सोशल मीडिया पर उस जगह से जुड़े विज्ञापन दिखना शुरू हो जाते हैं।

लेकिन अब जनरेटिव एआई की मदद से किसी के टेक्स्ट मैसेज, फोटो, वीडियो या ऑडियो का इस्तेमाल कर फर्जी कंटेंट बनाना भी आसान हो गया है।

हनी फरीद इस बारे में कहते हैं, ‘वॉइस क्लोनिंग भी होने लगी है, जैसे वीडियो में ईसाई धर्मगुरु का फर्जी बयान देते हुए दिखाना और वीडियो दुनिया भर में शेयर किया जाना। जनरेटिव एआई इस तरह का कंटेंट बना सकता है। कुछ लोग ऐसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं जिस पर कोई नियंत्रण नहीं है। यह काफी चिंताजनक है।’

प्रोफेसर हनी फऱीद कहते हैं कि ऐसे सॉफ्टवेयर अब आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं जिनका दुरुपयोग हो सकता है। जनरेटिव एआई का एक सॉफ्टवेयर है चैट-जीपीटी जिसके बारे में कहा जा रहा है की यह एआई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में नाटकीय बदलाव ला रहा है।

चैट-जीपीटी टेक्स्ट सामग्री बना सकता है, लेकिन इस तरह के और सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जो वीडियो और ऑडियो कंटेंट बना सकते हैं।

हनी फऱीद कहते हैं कि अगले साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार में इससे बनाई गई फर्जी सामग्री के इस्तेमाल की आशंका है।

चुनाव प्रचार में ऐसी फर्जी सामग्री के इस्तेमाल से मतदाता तो गुमराह होंगे ही, इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी क्षति पहुंचेगी। लेकिन जहां चुनाव में इसके दुरुपयोग का खतरा है वहीं इसके कुछ फायदे भी हैं।

चुनावी अभियान का खर्च

हम सभी जानते हैं चुनाव लडऩे के लिए चुनाव प्रचार का संगठन जितना आवश्यक है, उतना ही जरूरी है पैसा।

हमारे तीसरे एक्सपर्ट हैं मार्टिन कुरुज जो स्टर्लिंग डेटा कंपनी के सीईओ हैं। यह कंपनी अमेरिका में उम्मीदवारों को चुनावी अभियान के लिए चंदा जुटाने में मदद करती है।

मार्टिन कुरुज कहते हैं कि कई देशों में उम्मीदवारों के चुनाव का खर्च सार्वजनिक स्रोत से आता है लेकिन अमेरिका में वो अपने समर्थकों या कंपनियों से चुनाव के लिए चंदा जुटाते हैं।

वो कहते हैं, ‘मिसाल के तौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार अपने अभियान के लिए पार्टी समर्थकों से चंदा जुटाते हैं। पार्टी के लगभग 17 करोड़ समर्थक हैं जो चंदा दे सकते हैं या डोनर हैं।’

वो कहते हैं, ‘इनका पता पता लगाने के लिए उम्मीदवार हमारी मदद लेते हैं। वो चाहते हैं कि हम कम से कम समय में संभावित चंदा देने वालों की लिस्ट बनाई जा सके। इसके लिए हम एआई का इस्तेमाल करते हैं। सॉफ्टवेयर तमाम समर्थकों की प्रोफाइल और उससे जुड़ी जानकारी को प्रोसेस कर के एक लिस्ट बना देता है।’

मार्टिन कुरुज कहते हैं कि पहले समर्थकों की लिस्ट बनाने के लिए कंप्यूटर इंजीनियरों को कई दिनों तक काम करना पड़ता था, लेकिन अब यह प्रक्रिया बहुत आसान हो गई है।

उनका कहना है, ‘हम लोगों का डेटा अपने सॉफ़्टवेयर में डालते हैं और एआई यह काम कुछ मिनटों में कर देता है। अब बहुत से प्लेटफॉर्म इंटरनेट पर डीप लर्निंग की सुविधा दे रहे हैं और लोग डेटा प्रोसेसिंग के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।’

इससे एक तरफ उम्मीदवार के लिए चुनाव लडऩे का खर्च कम होता है, तो दूसरी तरफ उसे जिन लोगों की लिस्ट मिलती है वो उनके लिए फायदेमंद होती है।

मार्टिन कुरुज कहते हैं, ‘आने वाले समय में यह ख़र्च कम होता जाएगा और ज़्यादा लोग चुनावी मैदान में उतर सकेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में चुनावी प्रक्रिया में अधिक समानता लाने और उसे लोकतांत्रिक बनाने की क्षमता है।’

तो अब देखना यह है कि क्या अमेरिका के अगले राष्ट्रपति चुनावों पर इसका असर पड़ेगा?

2024- वॉटरशेड मूवमेंट

एक्सपर्ट नीना शिक जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जूड़ी जानी-मानी किताब डीपफेक्स की लेखिका हैं। वो कहती हैं कि अगले चुनाव तक यह तकनीक काफी आगे बढ़ जाएगी और इसके इस्तेमाल के बिना चुनाव अभियान चलाना मुश्किल हो जाएगा।

वो कहती हैं, ‘मुझे लगता है प्रचार का तरीका ही नहीं बल्कि लोगों के लिए संदेश भी बदल जाएंगे। जनरेटिव एआई हर मतदाता के लिए व्यक्तिगत किस्म का मैसेज बनाकर भेज सकता है। इससे राजनेता जनता के साथ बेहतर तरीके से संपर्क कर पाएंगे। किसी विषय या मुद्दे पर सार्वजानिक मत बनाने के लिए इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सबसे पहले चुनाव प्रचारों में ही होगा।’

मगर नीना शिक यह भी मानती हैं कि कई लोग इसका दुरुपयोग भी कर सकते हैं, जो चैट-जीपीटी के आने से पहले भी दिखाई दिया था।

उनके मुताबिक, ‘पिछले चुनावों के समय में हमने काफी फेक सामग्री देखी थी। डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन के फर्जी वीडियो सोशल मीडिया पर दिखाई दिए। जरूरी नहीं कि ऐसी सामग्री प्रतिद्वंद्वी खेमे से आये बल्कि कई और लोग भी यह काम कर सकते हैं।’

‘जनता के लिए फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि क्या असली है और क्या नकली। अगर किसी उम्मीदवार को रिश्वत लेते कैमरे में कैद कर लिया जाए तो वो पलट कर कह सकता है कि यह वीडियो फेक है। इस तरह सामग्री की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ जाएगी।’

वहीं रूस के खिलाफ 2016 से ही अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों को गलत तरीके से प्रभावित करने के आरोप लगते रहे हैं। तो क्या अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण इन चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप की संभावना अब पहले से अधिक बढ़ गई है?

इस बारे में नीना शिक कहती हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि फर्जी जानकारी फैलाने की क्षमता का इस्तेमाल विदेशी ताकतें कर सकती हैं। पिछले चुनावों के बाद से अधिकाधिक विदेशी ताकतें दुनिया भर में इस तरह की गतिविधियों में शामिल हो रही हैं।’

नीना शिक मानती हैं कि इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को चुनौती तो मिलेगी लेकिन वो कायम रहेगी।

लेकिन मूल प्रश्न है कि क्या एआई अमेरिका का अगला राष्ट्रपति तय कर सकता है?

एक्सपर्ट्स का कहना है कि एआई जहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कुछ फायदे पहुंचा रहा है वहीं इसमें उसे नुकसान पहुंचाने की भी ताकत है।

लेकिन यह हमारी ही बोई हुई फसल है जिसे हमें काटना है। इसलिए जरूरी यह है कि हम तय करें कि किस तरह का समाज हम चाहते हैं। (bbc.com/hindi)

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