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भारत-कनाडा तनाव: जस्टिन ट्रूडो क्या विश्व मंच पर अलग-थलग पड़ रहे हैं
25-Sep-2023 4:34 PM
भारत-कनाडा तनाव: जस्टिन ट्रूडो क्या विश्व मंच पर अलग-थलग पड़ रहे हैं

हॉली हॉन्डरिच

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इस हफ़्ते जब न्यूयॉर्क में मीडिया के सवालों का सामना कर रहे थे, उनकी चिर-परिचित और भरोसेमंद मुस्कान मंद पड़ रही थी.

संवाददाता सम्मेलन में उनसे जो सवाल पूछे गए सभी भारत से जुड़े थे. इसमें कोई आश्चर्य नहीं था क्योंकि एक सप्ताह पहले उन्होंने भारत सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे.

सोमवार को जस्टिन ट्रूडो ने संसद में कहा, "कनाडा की एजेंसियों ने पुख्ता तौर पर पता किया है कि कनाडा की ज़मीन पर कनाडाई नागरिक की हत्या के पीछे भारत सरकार के एजेंटों का हाथ हो सकता है. हमारी ज़मीन पर हुई हत्या के पीछे विदेशी सरकार का होना अस्वीकार्य है और ये हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है."

लेकिन भारत ने कनाडा के आरोपों को पूरी तरह ख़ारिज करते हुए इस हत्या के साथ कोई नाता होने से इनकार किया है.

इस साल 18 जून को कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में सिख नेता और खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर(45 साल) की एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

जस्टिन ट्रूडो से किए गए सवाल

धीरे-धीरे और बेहद संतुलित तरीके से बोलते हुए ट्रूडो ने कहा, "वो न तो किसी को भड़काना चाहते हैं और न ही कोई समस्या खड़ी करना चाहते हैं. हम उस विश्व व्यवस्था के लिए आवाज़ उठा रहे हैं जो नियमों पर आधारित है."

कुछ पत्रकारों ने इस दौरान ट्रूडो से सवाल किया कि उनकी इस पूरी कोशिश में उनके सहयोगी कहां हैं? एक पत्रकार ने कहा, "अब तक देखा जाए तो आप अकेले ही दिख रहे हैं."

जहां तक भारत से उलझने की बात है, अब तक जस्टिन ट्रूडो अकेले ही दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ रही अर्थव्यवस्था और आबादी के लिहाज़ से कनाडा से 35 गुना बड़े मुल्क के साथ दो-दो हाथ करते दिखाई दे रहे हैं.

जब से ट्रूडो ने भारत पर आरोप लगाए हैं तब से लेकर अब तक 'फ़ाइव आइज़' ख़ुफ़िया गठबंधन में शामिल उनके कुछ सहयोगी ही सार्वजनिक तौर पर सामने आए हैं.

उन्होंने मामले को गंभीर और चिंताजनक तो बताया है लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि वो खुल कर कनाडा के समर्थन में आए हैं.

फ़ाइव आइज़ के सदस्यों ने क्या कहा?

'फ़ाइव आइज़' अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच बना एक गठबंधन है जिसके तहत ख़ुफ़िया जानकारियां साझा की जाती हैं.

ब्रितानी विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने कहा, "हमारी सरकार कनाडा के आरोपों को बेहद गंभीरता से लेती है. हम सरकार की जांच का समर्थन करते हैं और सच्चाई बाहर आनी चाहिए."

लेकिन कनाडा को बड़ी निराशा दक्षिण में मौजूद उसके पड़ोसी, यानी अमेरिका से हुई.

ये दोनों मुल्क बहुत अच्छे मित्र हैं लेकिन अमेरिका ने इस मुद्दे पर मुखर होकर नाराजगी जाहिर नहीं की, जैसे उम्मीद की जा रही थी.

इस पूरे मुद्दे पर न्यूज़ीलैंड ने अब तक कुछ नहीं कहा है.

भारत का महत्व और अमेरिका का रुख़

उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.

संयुक्त राष्ट्र में जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने संबोधित किया तो उन्होंने भारत की आलोचना नहीं की बल्कि उन्होंने इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर की तरफ इशारा करते हुए एक नया आर्थिक रास्ता दिखाने में भारत की भूमिका की सराहना की.

बाद में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने इस मामले को लेकर अमेरिका और कनाडा के बीच किसी तरह की "दरार" से इनकार किया और कहा कि अमेरिका, कनाडा के साथ लगातार संपर्क में है.

हालांकि सार्वजनिक तौर पर इस मामले में अमेरिका ने जो बयान दिए उनमें केवल "गंभीर चिंता" की बात की और और ये भी माना कि पश्चिमी मुल्कों के लिए भारत की अहमियत बढ़ती जा रही है.

जानकारों ने बीबीसी को बताया कि मौजूदा वक्त में रणनीतिक तौर पर भारत की बढ़ती अहमियत के सामने कनाडा के हित कमज़ोर नज़र आ रहे हैं. उनका मानना है कि यही कनाडा की परेशानी है.

कनाडा इंस्टीट्यूट में रिसर्चर ज़ेवियर डेलगाडो कहते हैं, "अमेरिका, ब्रिटेन, पश्चिम के और मुल्क और इंडो-पैसिफ़िक के उनके सहयोगियों ने जो रणनीति बनाई है उसमें चीन के बढ़ते प्रभुत्व का मुक़ाबला करने में भारत की जगह अहम है. ये वो महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे वो अपने एक सहयोगी के लिए बाहर नहीं फेंक सकते."

कनाडा के टेलीविज़न सीटीवी न्यूज़ को दिए एक साक्षात्कार में कनाडा के लिए अमेरिकी राजदूत डेविड कोहेन ने इस बात की पुष्टि की कि फ़ाइव आइज़ के सहयोगियों के बीच इस मामले से जुड़ी ख़ुफ़िया जानकारी साझा की गई थी.

लेकिन इस गठबंधन के उन्हीं सहयोगियों से जुड़ी एक रिपोर्ट के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब उन्होंने ये कहते हुए टाल दिया कि वो "राजनयिकों की निजी बातचीत को लेकर कुछ नहीं कहना" चाहते.

इस रिपोर्ट के अनुसार कनाडा ने सभी सहयोगियों से गुज़ारिश की थी कि वो सार्वजनिक तौर पर इस हत्या की निंदा करें.

मौजूदा वैश्विक स्थिति में कनाडा की परिस्थिति

लेकिन इस मामले को लेकर वैश्विक स्तर पर जो चुप्पी देखी जा रही है वो विश्व मंच पर कनाडा की कमियों की तरफ इशारा करती है. वो पश्चिमी मुल्कों का भरोसेमंद सहयोगी तो है लेकिन अपने आप में दुनिया की एक बड़ी ताकत नहीं है.

कनाडा इंस्टीट्यूट के निदेशक क्रिस्टोफ़र सैंड्स कहते हैं, "ये कमज़ोरी की घड़ी है. हम जो देख रहे हैं वो मूल रूप से ताकत का खेल है. ये वो वक्त नहीं है, जब कनाडा सबकी आंखों का तारा हो."

"आज के दौर में फ़ैसला लेने के पीछ ताकत, बल और पैसा होता है, जो कनाडा के पास नहीं है."

भारत से बाहर कुछ लोगों ने जस्टिन ट्रूडो के सार्वजनिक तौर पर भारत पर आरोप लगाने के फ़ैसले को सही माना क्योंकि अगर ट्रूडो के आरोप सही साबित हो गए तो ये कनाडाई ज़मीन पर किसी दूसरे मुल्क द्वारा एक राजनीतिक हत्या को अंजाम देने का मामला होगा.

हालांकि ये नैतिकता कनाडा के लिए मौजूदा प्रतिकूल परिस्थिति को बदलने के लिए काफी होगी, ये नहीं कहा जा सकता.

ट्रूडो के लिए ये भू-राजनीतिक सच्चाई इस रूप में सामने आई कि एक तरफ आरोप लगाने के बाद के कुछ दिन उनके लिए अकेलेपन वाले रहे, तो दूसरी तरफ भारत के साथ कनाडा का कूटनीतिक विवाद बढ़ता ही गया.

कनाडा ने भारत के शीर्ष राजनयिक को निष्कासित कर दिया. जवाबी कार्रवाई में भारत ने भी कनाडा के शीर्ष राजनयिक को पांच दिनों के अंदर भारत छोड़ने का आदेश दे दिया.

भारत ने कनाडा में रह रहे अपने नागरिकों के लिए ट्रैवल एडवाइज़री जारी कर दी. कनाडा में भारतीय दूतावास ने वीज़ा सेवाओं पर ये कहते हुए रोक लगा दी कि "ऑपरेशनल वजहों से फिलहाल सेवाएं स्थगित कर दी गई हैं."

देश के भीतर ट्रूडो के लिए बढ़ती मुश्किलें

कनाडा में इस साल लंबी गर्मियों के बीच ट्रूडो के लिए ये सप्ताह इस एक ख़बर के अलावा भी बेहद उथल-पुथल भरा रहा.

कनाडा में लोगों के लिए महंगाई और बढ़ती ब्याज दरें पहले ही बड़ी समस्या हैं, इस बीच कनाडा में चुनावों में कथित चीनी हस्तक्षेप की ख़बर आई. आलोचकों का कहना है कि ट्रूडो और उनके कैबिनेट को इस बात की जानकारी पहले से थी, लेकिन उन्होंने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया.

इस बीच कनाडा के सबसे दुर्दांत सीरियल किलर पॉल बर्नार्डो को एक मीडियम-सिक्योरिटी जेल में शिफ्ट करने की ख़बर आई. इस मुद्दे को लेकर एक बार फिर ट्रूडो आलोचकों के निशाने पर आ गए.

सितंबर के महीने तक ट्रूडो की रेटिंग तीन साल के अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी थी. 63 फ़ीसदी कनाडाई नागरिकों की राय में 2015 में चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने ट्रूडो को वो एक बार फिर प्रधानमंत्री के पद पर नहीं देखता चाहते.

एक रिसर्च ग्रुप एंगुस रीड इंस्टीट्यूट की अध्यक्ष साची कर्ल कहती हैं, "आठ साल के अपने कार्यकाल में वो कभी इतने निचले पायदान पर नहीं रहे. उनसे सीधे-सीधे सवाल पूछे जाने लगे हैं कि क्या वो एक और बार चुनाव जीत सकेंगे? क्या उन्हें इस्तीफ़ा दे देना चाहिए?"

पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे जस्टिन ट्रूडो ने पीएमओ के कार्यालय तक पहुंचने के लिए निचले स्तर से शुरुआत की थी. 2015 में भारी बहुमत से जीतकर उन्होंने अपनी सरकार बनाई थी.

ग्लोब एंड मेल न्यूज़पेपर में मुख्य राजनीतिक संवाददाता कैम्पबेल क्लार्क कहते हैं, "कनाडा की राजनीति में वो एक ऐसे सेलिब्रिटी हैं, जैसे पहले कोई नहीं था. चुनाव जीतने के बाद उनकी लोकप्रियता में और बढ़ोतरी दर्ज की गई."

वो कहते हैं कि ऐसे लगता है कि आठ सालों के बाद अब लोगों का मन भर गया है और अब लोगों को लगता है कि ट्रूडो की जो स्टार पावर थी वो अब कम हो गई है, ख़ासकर हाल के महीनों में.

हालांकि कइयों को लगता कि वैश्विक मंच पर भले ही जस्टिन ट्रूडो अलग-थलग दिखाई दें, भारत के इस पूरे विवाद से उन्हें घरेलू स्तर पर काफी फायदा हो सकता है.

कैम्पबेल क्लार्क कहते हैं, "इस विवाद के कारण उनके लिए देश के भीतर उठ रहे सवालों से बचना आसान हो जाएगा."

लेकिन ट्रूडो के लिए ये सप्ताह इतना भी मुश्किल भरा नहीं रहा. सप्ताह के अंत में उनकी मुलाक़ात यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेन्स्की से हुई जो मौजूदा दौर के एक और बड़े सेलिब्रिटी हैं.

दोनों ने कनाडा-यूक्रेन मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए और कहा जा सकता है कि सप्ताह का आख़िरी दिन उन्होंने अपने अच्छे सहयोगी के साथ बिताया.(bbc.com/hindi)

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