विचार / लेख

महिला आरक्षण विधेयक
26-Sep-2023 3:43 PM
महिला आरक्षण विधेयक

 डॉ. आर.के. पालीवाल

नई संसद की पहली बैठक में सरकार द्वारा महिला आरक्षण बिल प्रस्तुत कर एक सकारात्मक शुरुआत हुई है। पिछले ढाई दशक से कई सरकारों ने महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं में आरक्षण की कोशिश की है इसमें कांग्रेस, भाजपा और यू पी ए एवम एन डी ए में शामिल कई दलों का भी सहयोग रहा है, इसलिए कह सकते हैं कि इस कार्य में सबका साथ और सबका योगदान है।

1996 में एन डी ए सरकार की पहल हुई थी और 2010 में यू पी ए सरकार ने राज्य सभा में इस बिल को पारित कर इस मुद्दे की मजबूत नीव रखी थी। वर्तमान मोदी सरकार पिछले नौ साल से शांत रहने के बाद चुनावों की पूर्व संध्या पर यह बिल लाई है।प्रधानमंत्री दूसरों के कार्यों का श्रेय भी खुद ले लेते हैं। यही कारण है उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक के लिए भी अपने नाम सेहरा बांधते हुए संसद में कहा कि यह काम भी उन्हीं के हाथ होना था। बिल आने से एक दिन पहले केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने कैबिनेट द्वारा बिल लाने के निर्णय की पुष्टि करते हुए एक ट्वीट किया था जिसे कुछ देर बाद उन्हें हटाना पड़ा। शायद उसे हटाने का यही कारण था कि प्रधानमंत्री यह घोषणा स्वयं करना चाहते थे। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सब मंत्री अपने अपने विभाग के प्रमुख होते हैं और प्रधानमंत्री और मंत्रीगण बराबर माने जाते हैं लेकिन कानून मंत्री को भी शायद यह इजाजत नहीं थी कि वे इस बिल का जिक्र कर दें।प्रधानमंत्री  जिस तरह ज्यादातर वंदे भारत ट्रेन को खुद ही झंडी दिखाते हैं इसी तरह इस बिल का जि़क्र भी पहली बार उन्हीं के मुख से हुआ है।

सरकार ने इस बिल का नाम नारी शक्ति वंदन अधिनियम रखा है। योजनाओं को नाम देने के मामले में मोदी सरकार का जवाब नहीं। उन्हें योजनाओं की पैकेजिंग का सरताज कहा जा सकता है। उद्देश्य के हिसाब से इस बिल का नाम महिला प्रतिनिधित्व अधिनियम होना चाहिए था लेकिन मोदी सरकार वंदन अभिनंदन जैसे भारी भरकम शब्दों से जनता को भावनाओं में बहाने की कोशिश करती है। जिस तरह से पुरुष प्रधान जन प्रतिनिधि पिछ्ले पचहत्तर साल में देश की अधिसंख्य जनता के हालात नहीं बदल पाए उसी तरह जब तक हमारी व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन नहीं होता तब तक एक तिहाई आरक्षण से महिलाओं का भी खास भला नहीं हो सकता क्योंकि टिकट उन्ही परिवारों की महिलाओं को मिलेंगे जो वर्तमान व्यवस्था चला रहे हैं।

महिलाओं के मुददे पर प्रधानमन्त्री और वर्तमान सरकार की छवि उज्ज्वल नहीं है। उनकी गुजरात सरकार पर महिला जासूसी के आरोप और  बिल्किस बानो के अपराधियों के सरंक्षण और सहानुभूति के आरोप भी लगे हैं । महिला पहलवानों के मामले में उनकी सरकार पर काफी कीचड़ उछली है। मणिपुर में महिलाओं पर अत्याचार को लेकर भी उनकी निष्क्रियता पर निशाने साधे गए थे। इस पृष्ठभूमि में इस विधेयक को जुमला भी कहा जा रहा है क्योंकि इस बिल को अभी भी लम्बा रास्ता तय करना है।

यह स्पष्ट है कि आगामी लोकसभा चुनाव में इसे लागू करना संभव नहीं है क्योंकि बिल पास होने के बाद भी यह तय करने में लंबा समय लगेगा कि किन सीटों को आरक्षित किया जाना है।लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इसे भी सरकार की कमी कहा जाएगा कि उसने इस बिल को पेश करने के पहले बहुत गुप्त रखा था जबकि इस पर व्यापक चर्चा की आवश्यकता थी ताकि इसके क्रियान्वयन की सभी बाधाएं यथाशीघ्र दूर करने के लिए सबकी राय ली जा सकती थी।

सरकार द्वारा अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम समय में लाने से इसे वोट बैंक की राजनीति माना जाएगा क्योंकि महिला सशक्तिकरण के अन्य मामलों में सरकार का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा। यही कारण है कि अब सरकार गैस सिलेंडर के दाम कम करके और महिला आरक्षण विधेयक बिल प्रस्तुत कर महिलाओं को खुश करने की कोशिश कर रही है।

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